धन है धरती रे, बहुत कुछ कहती रे!
धन है धरती रे, बहुत कुछ कहती रे!
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आपने अनुभव किया होगा कि वर्ष 2017 के मार्च और अप्रैल माह में अपेक्षाकृत गर्मी थी। दिन का तापमान इस दौरान बहुत अधिक दर्ज किया गया था। इतना ही नहीं इस समय में अमूमन कुछ क्षेत्रों में मावठे की बारिश होती है मगर इस बार तो वह भी नहीं हुई और जैसे ही मई माह आया आसमान में बादल मंडराने लगे। घबराईये नहीं मौसम अब कैलेंडर देखकर नहीं बदल रहा है। मगर फिर भी जिस तरह से पर्यावरण बदला है उससे मानव मन को चिंता होती है। जी हां, जिस तरह से मौसम में बदलाव आ रहे हैं उससे संकेत मिलते हैं कि अब पर्यावरण वैसा नहीं रहा।

फिर वैज्ञानिकों और विश्लेषकों की यह चेतावनी कि तेजी से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। गंगोत्री ग्लेशियर का आकार साल दर साल बदल रहा है। यह और चिंता बढ़ा देती है। जी हां, जो धरती धन कही जाती है वह अब मानव के लिए बीमारियों और परेशानियों का घर बनकर रह गई है। अब न तो हवा वैसी रही है और न ही पानी पहले जैसा रहा है। धरती पर जल तो बड़ी मात्रा में है लेकिन पेयजल के लिए कई लोगों को संघर्ष करना पड़ता है।

इतना ही नहीं अब मानव बारह माह खेती करता है जबकि खेती करने के दौरान फसल पक जाने के बाद खेत की मिट्टी को हल से या फिर अन्य यंत्र से पलटकर और खेत में फसल न बोकर खाली छोड़ दिया जाता था यह मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता था। मगर अब कई तरह की फसलें उगाई जाती हैं। पेस्टिसाईड्स का जमकर उपयोग होता है। इसके घातक परिणाम हमारे सामने हैं। कई ऐसे जीव जो कि पारिस्थितिकी के लिए आवश्यक थे वे अब लुप्त हो गए हैं।

अब तो फसलों को पकाने के बाद जो रासायनिक खाद डाली जाती है उसके प्रभाव से मानव को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। ग्लेशियर पिघलने से कई खतरे हमारे जीवन पर मंडरा रहे हैं। हिमालयी क्षेत्र में जिस तरह से वाहनों का परिवहन बढ़ रहा है जिस तरह से इस क्षेत्र में वायु परिवहन हो रहा है उससे स्थिति चिंताजनक बन गई है इतना ही नहीं यहां चलने वाले हाईड्रो पाॅवर प्रोजेक्ट, व हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के बेल्ट में संचालित इंडस्ट्रीज़ से यहां की शुद्ध जलवायु में जहर घुल गया है। तो दूसरी ओर यहां की जल संपदा भी प्रभावित हो रही है। मानव ने अपने ही हाथ से धनरूपी धरती को अपनी बर्बादी का जंजाल बनाकर रख दिया है।

 

 

 

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