कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का भाषण यूं तो अच्छा रहता है मगर कांग्रेस पर हाशिये पर जाने और राहुल को पप्पू कहे जाने के ही साथ उनके भाषणों का प्रभाव कुछ कम हो गया है। मगर कई बार वे काफी प्रभावी भाषण देते हैं। उनके भाषण में चुटिला अंदाज़ आता है।
जब राहुल ने संसद के मानसून सत्र में सरकार को महंगाई के मसले पर घेरा तो लगा जैसे महंगाई, किसानों की बदहाली के मसले पर गई यूपीए सरकार के घटक दलों को कुछ आस लगी। सदन में हाशिये पर गई कांग्रेस के नेताओं में भी कुछ जान आई। राहुल ने महंगाई के मामले में सरकार को घेरना शुरू किया और किसान बदहाली पर भी चर्चा की।
राहुल गांधी का यह अंजाज़ काफी अलग था। इस अंदाज़ में उन्होंने सरकार को महंगाई के मसले पर घेर लिया। दालों के बढ़ते दाम पर बात की तो पैट्रोलियम को लेकर भी उन्होंने चर्चा की। किसानों की बदहाली को भी सरकार को घेरा लेकिन वे भूमि अधिग्रहण बिल पर बोलने से बचे।
इसके बाद उन्होंने भूमि अधिग्रहण बिल की तो बात नहीं की लेकिन दाल के उत्पादन और किसानों को मिलने वाले अप्रत्यक्ष लाभ पर चर्चा की। हालांकि महंगाई का मसला उठाना इतना अधिक प्रभावी नहीं रहा। मगर उन्होंने एक मुश्किल को सामने रखा।
हालांकि यूपीए के कार्यकाल के दौरान भी महंगाई काफी अधिक थी। दालों के दाम आसमान छू रहे थे ऐसे में राहुल के बयान को अच्छा प्रतिसाद नहीं मिला। मगर राहुल के माध्यम से एक मसला सामने आया जो कि अब तक गौण था।
राजनीति के दौर में आरोप - प्रत्यारोप चलता रहा। बीफ, नेताओं की आपसी बयानबाजी, दलित पिटाई से जनता का असल मसला कहीं कोने में रह गया था मगर राहुल के भाषण से उस पर निश्चित ही लोगों का ध्यान जाएगा। यह एक महत्वपूर्ण बात है।