इतना खूबसूरत मंदिर जहाँ जाने का तो आप का मन करेगा अगर आपने फुल कपडे पहने हैं तो
इतना खूबसूरत मंदिर जहाँ जाने का तो आप का मन करेगा अगर आपने फुल कपडे पहने हैं तो
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किसी इमारत से इश्क करना है तो बैंकॉक के शाही बौद्ध मंदिर चले जाना. रूमानियत, नफासत, बारीकी और दिलकशी सब एक जगह. ऊपर से शाही रुआब भी. भीतर से ज़हनी क़िताब भी. देख कर आंखे फटी और मुंह खुला रह जाए. अपने आप को राजा राम का वंशज कहने वाले राजाओं ने अपने रहने के लिए ग्रांड पैलेस बनवाया था. यहां मौजूद यह शाही बौद्ध मंदिर देखने लायक है.

बैंकॉक के ग्रांड पैलेस को बाहर से देखने पर अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल होता है कि इसके सफेद, सपाट, ऊंचे परकोटों के भीतर कितनी अपार भव्यता छिपी हो सकती है. बौद्ध स्थापत्य कला की अपने आप में बहुत समृद्ध परंपरा रही है लेकिन इस स्थान को बौद्ध स्थापत्य कला का चरम कहना गलत नहीं होगा. हिंदू और बौद्ध मान्यताओं की इस जुगलबंदी को देख कर चकित हुए बिना नहीं रहा जा सकता.

यहां चीनी कलाकारी के प्रभाव के साथ बनी संभवतः काल्पनिक पात्रों की मूर्तियों, आकृतियों, और तस्वीरों को देखकर अगर आप विस्मित होने से बच गए तो स्वर्णिम छटा के साथ चटकीले रंगो से सजे गुंबदों, मेहराबों, खंबों और दीवारों को देखकर आप बच नहीं पाएंगे. कई मंदिरों के शिखरों पर तो रंगीन पत्थरों के टुकड़े ऐसे जंचा रखे है जैसे लगे कि फूलों की सजावट है.

इस मंदिर परिसर का मुख्य आकर्षण है, पन्ने से बना बुद्ध का मंदिर. इसके भीतर बौद्ध भिक्षुओं का अनुसरण कर प्रार्थना करते श्रद्धालुओं की स्वरलहरियां आत्मिक सुकून देती हैं. भाषा भले ही समझ न आए लेकिन गूंजती ध्वनितरंगे भीतर तक शांति पहुंचाती हैं. यहां स्वर्णिम सिंहासन पर विराजमान हरे रंग की यह बुद्ध प्रतिमा बेजोड़ है. इस सिंहासन को बुसाबोक लकड़ी पर पारंपरिक थाई कलाकारी कर सोने का पानी चढ़ा कर बनाया गया है. इस प्रतिमा की भी अपनी एक कहानी है.

यह प्रतिमा सन् 1434 में थाईलैंड के उत्तर में स्थित चियांग राई के एक बौद्ध स्तूप में मिली थी. देखने में यह प्रतिमा सामान्य सी, प्लास्टर ऑफ पैरिस से बनी दिखती थी. इस प्रतिमा को खोजने वाले विद्वान को बाद में दिखा कि प्रतिमा की नाक से प्लास्टर झड़ रहा है. उन्होंने पूरी प्रतिमा से प्लास्टर झाड़ा तो हरे रंग के कारण उन्हें लगा कि यह प्रतिमा पन्ने से बनी है. लेकिन बाद में पता चला कि यह सेमी प्रीशियस स्टोन, हरे फिरोज़ा की चट्टान को काट कर बनाई गई है. लेकिन तब तक यह प्रतिमा पन्ने के बुद्ध नाम से मशहूर हो चुकी थी.

इस मंदिर परिसर की बाहरी दीवारों के भीतरी गलियारे में रामायण की कहानियों को चित्रकारी से उकेरा गया है. यह चित्रकारी भी अद्भुत है. सीता हरण, लंका दहन और राम-रावण युद्ध की थाई शैली में की गई चित्रकारी देखकर कौतुहल होता है. विशेष पात्रों को स्वर्णिम रंग में डूबी कूंची से रेखांकित किया गया है. गलियारे की छाया में बाहर से पड़ती सूरज की हल्की सी रोशनी से ही यह पात्र चमक उठते हैं.  

थाइलैंड की मान्यता के अनुसार रामायण थाइलैंड की कहानी है. थाइलैंड को पहले सियाम कहा जाता था, जिसकी राजधानी अयुत्थया थी. ऐसा माना जाता है कि अयुत्थया या अयोध्या के राजा राम थे. इनके बाद 1782 में नए राजा ने कई कारणों से पुरानी राजधानी को अपने लिए अनुपयुक्त समझा और चाओ फरया नदी की दूसरी ओर ग्रांड पैलेस की स्थापना हुई. राजा ने न केवल यहां अपने रहने का स्थान बनवाया बल्कि सभी प्रशासनिक काम भी यहीं से होते थे. सबसे पहले यहां दो आवासीय इकाई बनीं ड्यूसिट महा प्रसात और फरा महा मोंथेन. महा मोंथेन के उत्तर में एक गलियारा इस बौद्ध मंदिर को जोड़ता है. लेकिन हर इश्क की तरह इस तक पहुंचने के लिए भी कुछ इम्तहान देने पड़ते हैं.

इनके बाद 1782 में नए राजा ने कई कारणों से पुरानी राजधानी को अपने लिए अनुपयुक्त समझा और चाओ फरया नदी की दूसरी ओर ग्रांड पैलेस की स्थापना हुई. राजा ने न केवल यहां अपने रहने का स्थान बनवाया बल्कि सभी प्रशासनिक काम भी यहीं से होते थे. सबसे पहले यहां दो आवासीय इकाई बनीं ड्यूसिट महा प्रसात और फरा महा मोंथेन. महा मोंथेन के उत्तर में एक गलियारा इस बौद्ध मंदिर को जोड़ता है. लेकिन हर इश्क की तरह इस तक पहुंचने के लिए भी कुछ इम्तहान देने पड़ते हैं.

इन सबको पार करके आप ग्रांड पैलेस तक पहुंच भी गए तो दुनियाभर से आए श्रद्धालुओं और कद्रदानों की लंबी कतार को पार कर आपको एक मोटा प्रवेश शुल्क अदा करना होता है. फिर अगला चरण यह है कि अगर आपने बिना बाजू का टॉप या फिर कोई ऐसी ड्रेस जिसमें कंधे दिखते हों पहनी है तो आपको प्रवेश नहीं मिलेगा. लड़के भी शार्ट्स, बरमूडा या हाफ पैंट में अंदर नहीं जा सकते. लेकिन एक अच्छी बात यह है कि ग्रांड पैलेस के बाहर ही कई दुकाने हैं जहां थोड़े महंगे दामों में ही सही, लेकिन आपकी मुश्किल हल हो सकती है.

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