आप के होकर भी आप के नहीं!
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नई दिल्ली : दिल्ली विधानसभा में वे विधायक उस वक्त अपनी डेस्क नहीं थपथपाते, जब उन्हीं की पार्टी का विधायक कोई बढ़िया भाषण देता है। वे सदन में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों के खिलाफ आवाज में अपनी आवाज भी नहीं मिलाते। यहां बात हो रही है आम आदमी पार्टी (आप) के ऐसे चार विधायकों की, जो भ्रष्टाचार से लेकर असंतोष तक के कारणों से पार्टी के संयोजक और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का विश्वास खो चुके हैं। कभी पार्टी के कर्मठ सिपाही रह चुके इन विधायकों के नाम हैं -असीम अहमद खान, जितेंद्र सिंह तोमर, कर्नल (अवकाश प्राप्त) देवेंद्र सहरावत और पंकज पुष्कर। सदन में इन्हें देखकर लगता ही नहीं है कि ये भी आप के 67 विधायकों में शामिल हैं। ये अपनी पार्टी से असंपृक्त और निराश अलग-थलग बैठे रहते हैं। सदन की कार्यवाही में इनकी भागीदारी सबसे कम होती है।

ये पीछे की पंक्ति में एक साथ बैठते हैं। इन्हें फर्क नहीं पड़ता कि सदन में कौन-सा ऐतिहासिक विधेयक पेश किया गया है और न ही इससे कि भाजपा विधायक ओ.पी.शर्मा ने आप विधायक अलका लांबा के खिलाफ कैसी टिप्पणी की है। 26 नवंबर को लांबा के खिलाफ शर्मा के बयान पर जब आप विधायक अध्यक्ष के आसन के सामने पहुंच गए, तब भी ये चारों हिचकिचाते दिखे। पार्टी के साथ होने का भाव दिखाने के लिए खान, तोमर और सहरावत ने अपनी सीट पर खड़े होकर शर्मा का विरोध जताया था। लेकिन, जब हंगामा बढ़ा और पार्टी के उत्तेजित दिख रहे एक विधायक ने इन्हें ललकारा, तब ये तीनों धीरे-धीरे चलकर आसन की तरफ गए। इनमें से सिर्फ सहरावत ने ही मुट्ठी लहराई, वह भी एक बार। और, फिर जल्दी से हाथ पैंट की जेब में डाल लिया। इस दौरान पंकज पुष्कर चुपचाप बैठे कुछ कागज पलटते रहे। विरोध में हिस्सा न लेने पर तोमर ने कहा, ऐसा नहीं है कि हम उनके (आप के) साथ नहीं हैं। लेकिन, मैं 50 साल का हूं और मेरा एक स्टेटस है।

यह अच्छा नहीं लगता कि मैं अध्यक्ष के आसन के सामने जाकर विरोध जताऊं। लांबा के खिलाफ शर्मा की टिप्पणी और इस पर आप के विरोध के बारे में उन्होंने कुछ और तर्क भी दिए। कहा, "चीजें एक सीमा में ही अच्छी लगती हैं। जब मामला आचरण समिति के सुपुर्द कर दिया गया तो फिर प्रदर्शन का क्या मतलब? पुष्कर ने तोमर की हां में हां मिलाई। पुष्कर ने कहा, मैं संवैधानिक व्यवस्था के प्रति सर्वाधिक फरमाबरदार हूं। और, मैं सदन में सर्वाधिक सक्रिय भी हूं। उन्होंने कहा, मैं एक ऐसे प्रदर्शन का हिस्सा क्यों बनूं जो मूर्खतापूर्ण है? एक बार जब आपने मामला आचरण समिति को भेज दिया तब फिर जेल भेजने की मांग कैसे कर सकते हैं। कई बार कोशिश के बावजूद सहरावत और खान का पक्ष इस बारे में नहीं लिया जा सका। यह सही है कि पुष्कर विधानसभा में सक्रिय रहते हैं, लेकिन उनकी सक्रियता अपनी पार्टी की सरकार के प्रस्तावित विधेयकों के विरोध से जुड़ी होती है।

 

तना विरोध करते हैं कि विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल को उन्हें दो दिन के लिए निलंबित करना पड़ गया था। पुष्कर ने खुलकर प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव का साथ उस वक्त दिया था, जब इन दोनों नेताओं को आम आदमी पार्टी से निकाला जा रहा था। उन्हीं की तरह सहरावत ने भी इन दोनों नेताओं के समर्थन में आवाज उठाई थी और खुद को पार्टी के खिलाफ कर लिया था। फर्जी डिग्री मामले में आप ने काफी समय तक तोमर का साथ दिया था। लेकिन उनकी गिरफ्तारी के बाद पार्टी ने उनका साथ नहीं दिया और कानून मंत्री के पद से इस्तीफा ले लिया। केजरीवाल ने कहा था कि तोमर ने उन्हें अंधेरे में रखा था। खान को केजरीवाल ने रिश्वत मांगने के आरोप में खाद्य मंत्री पद से हटा दिया था। खान ने कहा था कि वह पार्टी की अंदरूनी राजनीति के शिकार हो गए हैं।

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