याकूब की फांसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों में मतभेद
याकूब की फांसी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों में मतभेद
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नई दिल्ली : मृत्युदंड का सामना कर रहे याकूब मेमन की याचिका पर मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बीच मतभेद देखने को मिला। याकूब को वर्ष 1993 में मुंबई में हुए श्रृंखलाबद्ध बम विस्फोटों के लिए दोषी ठहराया गया है और उसे 30 जुलाई को मृत्युदंड दिया जाना है। याकूब ने याचिका में अपने मृत्युदंड को चुनौती दी है और सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश से मामले की सुनवाई के लिए एक अलग उचित पीठ बनाने का अनुरोध किया है। याकूब की याचिका पर यह मतभेद न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ के बीच उभरकर सामने आया। न्यायमूर्ति दवे ने वर्ष 1993 से लेकर 21 जुलाई, 2015 को याकूब द्वारा सुधारात्मक (क्यूरेटिव) याचिका दायर किए जाने तक की न्यायिक प्रक्रियाओं को ध्यान में रखते हुए याकूब की ताजातरीन याचिका खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति कुरियन ने याकूब की सुधारात्मक याचिका खारिज करने वाली पीठ की संरचना को लेकर ही खामी का जिक्र किया और टाडा अदालत द्वारा मेमन को फांसी देने के लिए 30 अप्रैल को जारी मृत्यु वारंट को अमल में लाने पर रोक लगा दी। याकूब को 30 जुलाई को नागपुर में फांसी दी जानी है। न्यायमूर्ति कुरियन ने कहा कि मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय के नियमों के अनुरूप गठित पीठ के समक्ष नए सिरे से होनी चाहिए। न्यायाधीशों ने इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एच.एल. दत्तू के पास भेज दिया।

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