गुरु की पूजा से परमात्मा की पूजा सम्पन्न होती है
गुरु की पूजा से परमात्मा की पूजा सम्पन्न होती है
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जैसे गुरूओं का कर्तव्य है शिष्यों का आत्म उन्नति के पथ पर पहुँचाना, उसी तरह शिष्यों का धर्म है गुरुओं का सेवा करना। पिता की प्रसन्न्ता से प्रजापति ब्रह्मा प्रसन्न होते हैं, माता की सेवा और बन्दगी से सम्पूर्ण पृथ्वी की पूजा हो जाती है, परन्तु जिस व्यवहार से शिष्य अपने गुरु को प्रसन्न कर लेता है उसके द्वारा परब्रह्म परमात्मा की पूजा सम्पन्न होती है इसलिए गुरु, माता-पिता से बढ़कर पूज्य है। गुरुओं की पूजा से ही पितर, ऋषि और देवता प्रसन्न होता हैं इसलिए गुरु परम पूजनीय है। माता- पिता और गुरु का कभी अपमान न करे , उनकी निन्दा न करे न सुने।

मन या कर्म से माता पिता और गुरु से द्रोह करने वाले महा पापी नर्क भोगते हैं। उनका उद्धार कभी किसी काल में नहीं होता। कृतघ्न मनुष्य के लिये हमने कोई प्रायश्चित ही नहीं सुना। माता - पिता के द्वारा पालन- पोषण होकर बड़े हो जाने पर जो उनका पालन- पोषण नहीं करते, स्त्री के कहने से या किसी दूसरे कारण से उन्हें दुखी रखते हैं वह कभी फलते- फूलते नहीं और आगे उनकी सन्तान भी उन्हें ऐसी ही तंग करती है।

इसलिए इन तीनों की सेवा ही सबसे बढ़िया धर्म है, इससे बढ़के और कोई साधन नहीं है। और दुनिया में मानो तो ये सब सच हे न मानो तो कुछ भी सच नहीं हे यहाँ तरह तरह के लोग होते हे सबकी अपनी अपनी राय अपने विचार होते हे। हम किसी पर अपनी राय या विचार थोप नहीं सकते।

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