विश्व रंगमंच दिवस: समाज को आइना दिखाता 'रंगमंच'
विश्व रंगमंच दिवस: समाज को आइना दिखाता 'रंगमंच'
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जीवन और रंगमंच एक दूसरे के पर्याय हैं, जहां परदे के गिरने और उठने के बीच, एक पृथक दुनिया बसती है. उसकी एक पृष्ठभूमि होती है, एक कहानी होती है, कुछ किरदार होते है, कुछ संवाद होते है, कुछ अभिव्यक्तियाँ होती है, और ये हर बार जीवन का एक सार प्रस्तुत करते हैं. कभी भागती, हांफती और थकती ज़िन्दगी में हास्य पैदा करती है, तो कभी ज़िन्दगी की सबसे निचली परत की मार्मिक कहानियां बयान करती हैं. ये सभी अनुभूतियां मनुष्य को समाज के प्रति उसके कर्त्तव्य का भान कराती रहती हैं और यही वजह है कि समाज को रंगमंच की और रंगमंच को समाज की जरुरत बनी हुई है. 

मगर बदलते वक्त के साथ और ग्लमैर की बढती सत्ता के बीच रंगमचं की चमक फीकी पड़ती जा रही है. अभिनय का जनक हमेशा से रंगमंच ही रहा है, किन्तु आज के समय में रंगमचं पर पैदा हुए कलाकार खुद रंगमचं के प्रति बेरुखी करने लगते हैं, वे रंगमचं के सीने पर कला तो सीखते है, पर सीखने के बाद ग्लमैर की गोद में बैठ कर उसमे  इतना रम जाते है कि वही रंगमचं उन्हें पिछड़ा सा लगने लगता है. 

इसके पीछे लोगों की बेरुखी का भी बड़ा हाथ है, आज का विकास करता समाज रंगमंच से दूर भाग रहा है और ग्लेमर के कारण फिल्मों की तरफ ज्यादा झुकाव रख रहा है. वैसे फिल्मों की उत्पत्ति भी रंगमंच से ही हुई है, लेकिन व्यापार का भाव आ जाने की वजह से फिल्मों को ऐसा रूप दिया जाने लगा है, जो कई बार समाज के लिए हानिकारक भी सिद्ध होता है. हालांकि रंगमंच इस मामले में अपवाद है, वह हमेशा से भ्रमित हो चुके समाज को आईना दिखाकर सही राह पर लाने का काम बखूबी करता आया है और आशा है कि रंगमंच की यह परंपरा आगे भी जीवित रहेगी.  

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