क्यों मनाते है दशहरा उत्सव ? क्या है इसकी महत्वता
क्यों मनाते है दशहरा उत्सव ? क्या है इसकी महत्वता
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धार्मिक परंपरा के अनुसार यह दशहरा यानी विजयदशमी इसी दिन रावण पर राम की विजय का उत्सव के रूप में मनाया जाने वाला यह त्योहार हमें यही सीख देता है. की हमेशा बुराई को त्याग कर अच्छाई के मार्ग पर चलो हमेशा अच्छाई की ही विजय होती है.

बुराई को खत्म करने के लिए रावण का पुतला बनाकर उसका दहन किया जाता है.मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि रावण एक विद्वान और तेजस्वी ब्रांहण था. यह दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है.जो अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है.

शास्त्रों के माध्यम से कहा जाता है की रावण वेदों के साथ ही साथ युद्धशास्त्र का भी ज्ञाता था.वह बहुत ही भक्ति करता था उसकी भक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे यह वरदान दिया था कि उसे न देव मार सकेंगे न दानव.लेकिन फिर भी रावण मारा गया क्योंकि समस्त गुणों के होते हुये भी रावण में एक बुराई थी वह था उसका अहंकार.

क्योंकि कहा जाता है की व्यक्ति का अहंकार कभी टिकता नहीं वह नष्ट ही हो जाता है.हमेशा धर्म की जीत होती है. रावण तीनों लोकों को जीत लेने और किसी के द्वारा भी नष्ट न होने का वरदान को प्राप्त कर उसके मन में अहम की भावना जाग्रत हो गई उसे अपने जीवन में अहंकार हो गया.वह अपने आप को श्रेष्ठ मानने लगा और यह समझ बैठा की मेरे जैसा कोई नहीं है.

कहा जाता है की ब्रह्मांड के हर एक राज्य को जीतकर रावण सभी देवताओं को बंदी बनाकर अपनी लंका ले आया और उन्हें उन सभी को अपना दास बना लिया.रावण ने अग्निदेव को रसोई घर में काम करने वाला  (रसोइया), वायु देव को रावण ने झाड़ू लगाने वाला, ब्रह्मा जी को भृत्य के रूप में , शिव को केशकर्त्तक के रूप में , विष्णु जो को मैनेजर, यम को एक धोबी और वरुणदेव रावण ने  पानी भरने वाला बना लिया.लेकिन जैसा कि सदियों से चली आ रही कहावत कहती है, घमंड तो राजा रावण का भी नहीं रहा अंतत: देवता व राक्षसों से न मारे जा सकने वाले रावण को मनुष्य रूप धारण कर भगवान राम ने उसका अंत किया था.

रावण को अहंकार हो गया था की में अब अमर हूँ मुझे कोई भी नहीं मार सकता है.और वह बुरे कर्मों की ओर बढ्ने लगा पर हमेशा जीत तो सच्चाई व अच्छे कर्म की होती है.किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन में अहंकार नहीं होना चाहिए ।व्यक्ति को अपने धन दौलत सुख संव्रधी जन ,बल आदि का अहम नहीं होना चाहिए. ये सब एक दिन छूट जाते है कुछ काम नहीं आते इनका सद उपयोग करो अहम नहीं। क्योंकि व्यक्ति का जीवन सीमित है। उसे यह तन छोड़ना ही होगा.

इसीलिए कहा गया है –"आया है सो जाएगा राजा रंक फकीर "

आम जीवन में भी हम ऐसे लोग देखते हैं.जरा सा पद, जरा-सा पैसा, जरा-सा अधिकार प्राप्त करने पर भी कभी-कभी इंसान को घमंड आ जाता है.पर यह आपकी गलत सोच है व्यक्ति को सदा सद भाव के साथ सहजता से जीवन व्यतीत करना चाहिए बुराई को त्याग अच्छाई को ग्रहण करें.यह भी एक विजयादशमी का संदेश है.

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