भगवान ने इस संसार सागर में क्यों लिया था अवतार
भगवान ने इस संसार सागर में क्यों लिया था अवतार
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ईश्वर एक ही है. और वह निराकार जिसे हम निराकार परम ब्रम्ह भी कहते है पर इस श्रष्टि की रचना के बाद भगवान ने यहां अवतार लिया है. उनके अवतार लेने के प्रमुख तीन कारण  है.  पहला प्रार्थना , दूसरा दुष्टों , दुराचारियों का नाश और तीसरा धर्म का दर्शन (नीति और अनीति का पाठ )  

प्रार्थना - इस जगत में बहुत बड़े बड़े संत , भक्त हुए है. उन्होंने भगवान के दर्शन के लिए प्रार्थना की और जिस रूप में देखना चाहा उस रूप में दर्शन किये है.तभी तो कहते है कि भगवान केवल भाव के भूखे है. भगवान भक्त से कहते है कि तू मुझे सच्चे मन से पुकार के तो देख में तुझे दर्शन अवश्य दूंगा तेरे हर कार्य को सिद्ध कर दूंगा. बहुत से ऐसे ऋषि -मुनि थे जिन्होंने भगवान को ध्यान  के माध्यम से अपने सामने देखा है .

दुष्टों का किया नाश - इस जगत में हो रहे अत्याचार ,दुष्ट , दानव के द्वारा संतों को परेशान करना उनके कार्यों में बाधा  उत्पन्न करना , दुर्जनों द्वारा सज्जनों को परेशान करना ,कष्ट पहुंचाना  इन सभी गलत कार्यों  को दूर करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान ने लिया था अवतार.

धर्म -अधर्म का पाठ - भगवान ने  इस संसार सागर में मानव को धर्म -अधर्म के बारे में बतलाने के लिए अवतार लिया कि क्या धर्म है . क्या अधर्म है , न्याय और अन्याय के बीच क्या अंतर है. जीवन के लिए क्या नीति है? और क्या अनीति , कर्म क्या है? फल क्या है?अनेकों बातों से अवगत कराया. मानव के जीवन को आगे बढ़ाने और अच्छे और बुरे मार्ग का बोध कराने के लिए , जीवन में और भी नैतिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए , आपके जीवन के मूल कर्तव्य क्या है? उनका अनुसरण कैसे करना है. तमाम बातों  से अवगत कराने के लिए  अवतार लिया था .भगवान ने मानव को काम , क्रोध ,लोभ  से भी अवगत कराया था की ये क्या है .

तभी तो इस जगत में कहा गया है कि - जब जब होय धर्म की हानि तब तब जन्मा कोई ज्ञानी .

इस जगत में भगवान ने  अलग - अलग रूप में  अवतार लेकर लीला की  है.  श्रीराम, श्रीकृष्ण आदि रूपों में श्री भगवान का अवतार आगम ग्रंथों में विभव कहलाता है. श्रीमत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, राम (जामदग्न्य), राम (दाशरथि), कृष्ण, बुद्ध और कल्कि, ये दस अवतार प्रसिद्ध हैं. श्रीवराह, सनकादि, नारद, नर-नारायण, कपिल, दत्तात्रेय, यज्ञ, ऋषभ, पृथु, मत्स्य, कूर्म, धन्वन्तरि, मोहिनी, नृसिंह, वामन, परशुराम, वेदव्यास, राम, बलराम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि- ये 22 अवतार कहलाते हैं. हंस और हृयग्रीव की संख्या मिलाने से यह 24 होते हैं. आगम ग्रंथों में अनन्य अवतारों के भी नाम उपलब्ध होते हैं.विभव के दो भेद हैं- स्वरूपावतार और आवेशावतार,जब भगवान किसी न किसी स्वरूप में अर्थात् स्वयं ही अवतीर्ण होते हैं, तब उनका वह रूप स्वरूपावतार कहलाता है, जैसे दशरथ घर श्रीराम का जन्म , किंतु जब किसी जीव विशेष में परमात्मा की शक्ति का आवेश होता है, तब उसे आवेशावतार कहते हैं, जैसे किसी भक्त के अंदर भगवान की शक्तियों का जागरण होना .

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