भूमि पूजन में चाँदी के नाग और कलश की पूजा होती है. वास्तु विज्ञान और शास्त्रों का मत है कि भूमि के नीचे पाताल लोक है जिसके स्वामी भगवान विष्णु के सेवक शेषनाग भगवान हैं. इन्होंने ही अपने फन पर पृथ्वी को उठाकर रखा हुआ है. भूमि पूजन के समय नींव में चाँदी के साँप की पूजा का उद्देश्य शेषनाग की कृपा पाना होता है.
भूमि पूजन में कलश रखने के पीछे भी यही आस्था और विश्वास काम करता है कि इससे शेषनाग भगवान की कृपा प्राप्त होगी. शास्त्रों के अनुसार शेषनाग क्षीर सागर में रहते हैं इसलिए कलश में दूध, दही, घी डालकर शेषनाग का आह्वान मन्त्रों द्वारा कलश में किया जाता है ताकि शेषनाग भगवान का प्रत्यक्ष आशीर्वाद मिले.
नींव में साँप को रखकर यह माना जाता है कि जिस प्रकार शेष नाग ने पृथ्वी को संभालकर रखा है उसी प्रकार शेष नाग उनके भवन को भी संभालकर रखें. भवन सुरक्षित और दीर्घायु होगा. कलश में सिक्का और सुपारी डालकर यह माना जाता है कि लक्ष्मी और गणेश की कृपा प्राप्त होगी. कलश को ब्रह्माण्ड का प्रतीक और विष्णु का स्वरुप मानकर उनसे प्रार्थना की जाती है कि देवी लक्ष्मी सहित इस भूमि में विराजमान रहें और शेषनाग भूमि पर बने घर को हमेशा सहारा देते रहें.