दिल और दिमाग क्यों फैसलों को लेकर होते है आमने-सामने
दिल और दिमाग क्यों फैसलों को लेकर होते है आमने-सामने
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वह कहते है दिल दिमाग की नहीं सुनता, इसलिए फैसले लेने में मुश्किलें पेश आती है. दिल और दिमाग दो अलग तरह की बातें करता है जिससे मुश्किलें और अधिक बढ़ जाती है. ऐसा भी कहा जाता है दिमाग व्यावहारिक हो कर सोचता है और दिल भावनाओ में बहकर बोलता है, किन्तु ऐसा जरूरी नहीं है. रिसर्चरों के अनुसार, जब व्यक्ति के पास ए और बी ऑप्शन होता है तब वह बखूबी जानता है कि एक सही होगा और दूसरा गलत. किन्तु मुश्किल तब आके खड़ी होती है जब कोई तीसरा ऑप्शन आके खड़ा हो जाता है.

इस कारण दिमाग भटकने लगता है. जैसे तेज संगीत के शोर की तरह हम किसी चीज पर ध्यान नहीं देते पाते उसी तरह दिमाग में शोर होना शुरू हो जाता है. हमारे पास सिर्फ दो विकल्प हो तो हम बेहतर फैसला ले पाते है.

आगे से कभी भी यह मत सोचिए कि आपको कई चीजों में से एक को चुनने का मौका मिले. इस तरह आप सिर्फ गलत ही फैसला लेंगे. साइंटिस्ट ने इस बारे में रिसर्च कर कहा है कि हम तर्कहीन फैसला ले रहे है, उसके बाद भी हम उस फैसले को चुनते है.

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