दिवाली पर दिए क्यों जलाते हैं
दिवाली पर दिए क्यों जलाते हैं
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दीपावली या दिवाली हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है.भारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है. यह त्यौहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है.दीवाली के पहले से घर की सफाई और रंगरोगन शुरू हो जाता है.दिवाली के दिन घर के आँगन में रंगोली बनाते हैं और पूरे घर में घी के दिए जलाए जाते हैं.

दिवाली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है.हिन्दुओं के उपनिषदों में कहा गया है, ’असतो माऽ सद्गमय, तमसो माऽ ज्योतिर्गमय’ यानि,सत्य की सदा विजय होती है और झूठ का नाश होता है.दीवाली इसी का प्रतीक है कि हम अन्धकार से प्रकाश की और जाएँ.इसीलिए अमास्या की इस रात्रि को दीप के प्रकाश से अन्धकार का नाश किया जाता है.

माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री राम, अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे.उनके स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीए जलाए थे,उसी के उपलक्ष्य में तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष इसी तिथि को दीपक जलाकर यह प्रकाश-पर्व हर्षोल्लास से मनाते हैं.

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