क्यों दिया था माता पारवती ने कार्तिकेय को श्राप
क्यों दिया था माता पारवती ने कार्तिकेय को श्राप
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पिछले भाग में हमने आपको बताया था की कैसे शंकर जी पारवती से नाराज होकर चले गए थे,

अब जानते है उससे आगे की कहानी -

भगवान शिव उन्हें हरिद्वार में मिले. उस समय भगवान शिव, भगवान विष्णु व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे. पार्वती से नाराज शंकरजी ने लौटने से मना कर दिया.इधर भगवान विष्णु ने भगवान शिव की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया. गणेश जी ने माता के उदास होने की बात शंकरजी को कह सुनाई. इस पर शंकरजी बोले कि हमने नया पासा बनवाया है, अगर तुम्हारी माता पुन: खेल खेलने को सहमत हों, तो मैं वापस चल सकता हूं.

गणेश जी के आश्वासन पर शंकरजी वापस पार्वती के पास पहुंचे तथा खेल खेलने को कहा. इस पर पार्वती हंस पड़ी और बोलीं, 'अभी पास क्या चीज़ है, जिससे खेल खेला जाए.' यह सुनकर शंकरजी चुप हो गए.

इस पर नारद ने अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हें दी. इस खेल में शंकरजी हर बार जीतने लगे. एक दो पासे फैंकने के बाद गणेश जी समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया.

सारी बात सुनकर पार्वती जी को क्रोध आ गया. तब उन्होंने शंकरजी को शाप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा. नारद को कभी एक स्थान पर न टिकने का शाप मिला.भगवान विष्णु को शाप दिया कि त्रेतायुग में रावण तुम्हारा शत्रु होगा. कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने हमेशा बाल्यवस्था में रहने का शाप दिया दे दिया. इस तरह यह कहानी जन्म जन्मांतर तक आगे बढ़ती गई और पुराणों में उल्लेखित होती गई.

क्यों दिया था माता पार्वती ने कार्तिकेय को...

 

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