जब महादेव को निगल गई थी माँ सती, जानिए पूरी कहानी
जब महादेव को निगल गई थी माँ सती, जानिए पूरी कहानी
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धूमावती माँ हिंदू धर्म में एक मां दुर्गा की अवतार हैं। धूमावती माँ का नाम 'धूम' से लिया गया है, जो धुंआं से भरे वनों का अर्थ होता है। वह महामाया के रूप में जानी जाती हैं जो अपनी शक्ति और साधना से समस्त दुःखों से मुक्त होती हैं। धूमावती माँ की पूजा में अमलतास वृक्ष का महत्वपूर्ण रोल होता है, जो माँ की वैभवशाली पूजा स्थलों पर पाए जाते हैं। धूमावती माँ भारतीय हिंदू धर्म में एक तांत्रिक देवी हैं। वे तांत्रिक साधनाओं के माध्यम से पूजी जाती हैं और अपने भक्तों को अनुग्रह देती हैं। धूमावती माँ को ज्ञान और तंत्र की देवी माना जाता है और वे अपने भक्तों को उनकी साधना के द्वारा मुक्ति प्रदान करती हैं। उन्हें एक अलग पहचान होती है, जिसमें वे एक तांत्रिक देवी होने के साथ-साथ अन्य देवियों से भिन्न होती हैं। धूमावती माँ को महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड, राजस्थान और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में पूजा जाता है।


धूमावती माँ की उत्पत्ति कैसे हुई?


प्रथम कथा:-
मां धूमावती के प्राकट्य से संबंधित कथाएं अनूठी हैं। पहली कहानी तो यह है कि जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से खुद को जला कर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआं निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ। इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं। मतलब धूमावती धुएं के तौर पर सती का भौतिक स्वरूप है। सती का जो कुछ बचा रहा- उदास धुआं।
 
दूसरी कहानी:-
एक बार सती महादेव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थी। तभी उन्हें ज़ोरों की भूख लगी। उन्होंने महादेव से कहा- 'मुझे भूख लगी है' मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें.' महादेव ने कहा-'अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता' तब सती ने कहा-'ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूं। तथा वे शिव को ही निगल गईं। महादेव तो स्वयं इस जगत के सर्जक हैं, परिपालक हैं। ले‍किन देवी की लीला में वे भी शामिल हो गए। भगवान महादेव ने उनसे अनुरोध किया कि 'मुझे बाहर निकालो', तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया... निकालने के पश्चात् महादेव ने उन्हें शाप दिया कि ‘आज और अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी... तभी से वे विधवा हैं। पुराणों में अभिशप्त, परित्यक्त, भूख लगना एवं पति को निगल जाना ये सब सांकेतिक प्रकरण हैं। यह मनुष्य की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी समाप्त नहीं होती तथा इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है। मां धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की तरफ इशारा करती हैं।

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