दान अर्थात देने की प्रक्रिया और त्यागने का सुख इन दोनों के समयुजित भाव को दान कहते है | आपके पास जो आवश्यकता से अधिक है और औरो के पास जो नहीं है ऐसे समझते हुए अपने भोगो का परमार्थ के लिये त्याग करना दान है | दान निष्काम और सकाम दोनों होते है | आइये जाने दान के प्रकार |
दान के समय और प्रकार !!
(1) नित्य दान – जो प्राणी नित्य सुबह उठ कर अपने नित्या कर्म में देवता के ही एक स्वरूप उगते सूरज को जल अर्पित कर दे उसे ढेर सारा पुण्य मिलता है। उस समय जो स्नान करता है, देवता और पितर की पूजा करता है, अपनी क्षमता के अनुसार अन्न, पानी, फल, फूल, कपड़े, पान, आभूषण, सोने का दान करता है, उसके फल असीम है। कोई भी दिन दान से मुक्त नहीं होना चाहिए। ऐसे दान को नित्य दान कहते है |
(2) नैमित्तिक दान - जो दान स्थिति,अवसर और समय अनुसार दान किया हो वो नैमित्तिक दान कहलाता हैं। अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी, संक्रांति, माघ, अषाढ़, वैशाख और कार्तिक पूर्णिमा, सोमवती अमावस्या, युग तिथि, , अश्विन कृष्ण त्रयोदशी, व्यतिपात और वैध्रिती नामक योग, पिता की मृत्यु तिथि आदि को नैमित्तिक समय दान के लिए कहा जाता है।
(3) काम्या दान - जो दान कामना की पूर्ति करे उस दान को काम्य दान कहा जाता है| कई लोग ऐसे मनोती का दान भी कहते है | जब एक दान व्रत और देवता के नाम पर कुछ इच्छा की पूर्ति के लिए किया जाता है, उसे दान के लिए काम्या दान कहा जाता है, जैसे पुत्र प्राप्ति के लिये दरिद्रो को भोजन करवाना आदि |