बदलते समय में कैरियर प्लानिंग में क्या बदलाव चाहिये ?
बदलते समय में कैरियर प्लानिंग में क्या बदलाव चाहिये ?
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कैरियर प्लानिंग, जमाने के बदलाव और उनका महत्व:  

जब व्यक्ति तरुणाई से युवावस्था की ओर बढ़ने लगता है अर्थात 14-15 वर्ष की उम्र से 20-21 के मध्य की उम्र होती है तो कैरियर के बारे में विभिन्न प्रश्न ही उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न होते हैं और उनके उत्तर ही उसके जीवन की दिशा और दशा निर्धारित करते हैं। यह समय खासतौर पर कैरियर प्लानिंग का वक्त होता है। यदि किसी ने इस दौरान कैरियर संबंधी सही योजना बनाई और सही निर्णय लिए तो उसका जीवन सँवर जाता है, सफल हो जाता है और यदि गलत निर्णय लिए तो जीवन असफल हो जाता है और ऐसे निर्णय जीवन-भर के लिए पछतावे के कारण बन जाते हैं। कई बार 25-30 की उम्र तक भी यदि कैरियर का सही निर्धारण नहीं हो पाता है तो व्यक्ति अपने निर्णय या रास्ते बदलता रहता है और उसके कई वर्ष व्यर्थ हो जाते हैं। खैर, देर-सबेर ही सही, पर यदि व्यक्ति कैरियर के संबंध में अपने अनुकूल या सही राह को अपना ले तो वह सफल हो सकता है ।

इस संबंध में यह ध्यान रखना जरूरी है कि हर पल परिवर्तन संसार का नियम है और देश-काल की परिस्थितियाँ, आर्थिक-सामाजिक-राजनैतिक परिदृश्य में बहुत कुछ बदलता रहता है; इसलिए इस परिदृश्य में या यों कहे कि जमाने में जो बदलाव आ रहे है उनकी जानकारी और उन पर ध्यान रखते हुए; युवाओं को अपनी सोच-समझ में भी लगातार बदलाव लाना जरूरी है । उन्हीं के अनुसार यदि आपकी कैरियर प्लानिंग होगी या कैरियर संबंधी निर्णय होंगे तो आप अपना निर्धारित कैरियर पा सकेंगे और आपकी राह आसान होगी । यहाँ हम जमाने के ऐसे ही कुछ बड़े बदलावों का जिक्र करेंगे और बताएँगे कि युवाओं को अपने कैरियर संबंधी सोच-विचार में उन्हें किस तरह ध्यान रखना चाहिये ।

कैरियर प्लानिंग के आधार और अपवाद संबंधी स्पष्टीकरण:

आगे बढ्ने से पहले एक बात स्पष्ट करना जरूरी है कि ये बातें सभी लोगों पर एक जैसी लागू नहीं होती है । क्योंकि हर व्यक्ति के कैरियर संबंधी निर्णय अलग-अलग तथ्यों के आधार पर ही होते हैं । इसके पाँच प्रमुख आधार होते हैं (1) रुचि या चाहत (2) प्रतिभा, क्षमता व कमजोरियाँ (3) पारिवारिक-सामाजिक परिस्थितियाँ (4) देश एवं अर्थ-व्यसथा की मांग या आवश्यकता (5) सीमाएं, समस्याएँ व चुनौतियाँ । इन सभी के बारे में विस्तार से कभी और समझेंगे, फिलहाल यह जानना काफी है कि ये सभी आधार हर युवा (या किसी भी व्यक्ति) के लिये बिलकुल भिन्न-भिन्न होते हैं । इसलिए, यहाँ लिखी सामान्य जानकारियों के आधार पर ही सभी को अपने निर्णय करना चाहिये; ऐसा कोई दावा या आग्रह भी हमारा नहीं है । यहाँ हम केवल परिस्थितियों में आए हुए बदलावों की जानकारी देकर उन्हें ध्यान में रखने की आवश्यकता बता रहे हैं ।

अर्थ-व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र और उनमें रोजगार का बदलता अनुपात:

किसी जमाने में खेती को सर्वोत्तम रोजगार माना जाता था । ‘उत्तम खेती, मध्यम व्यापार व अधम चाकरी’ की उक्ति आपने सुनी होगी । फिर कालांतर में व्यापार व नौकरी का महत्व बढ़ता रहा और खेती का रुतबा घटता गया । उत्पादक उद्योगों की रोजगार के एक बढ़े क्षेत्र के रूप में अलग से पहचान हमारे देश में बहुत समय तक नहीं रही । वह धीरे-धीरे बनी और स्वतन्त्रता आंदोलन के समय में गांधीजी ने चरखा, खादी और स्वदेशी को एक विशेष महत्व दिलाया । अब जिसे नौकरी का क्षेत्र माना जाता था उसके तीन प्रकार हो गए हैं एक शासकीय नौकरियाँ, दूसरी उत्पादक इकाइयों की श्रम-प्रधान नौकरियाँ व तीसरी सेवा क्षेत्र की शिक्षा-प्रधान नौकरियाँ । वैसे तो अर्थव्यवस्था के तीन ही बड़े क्षेत्र माने जाते हैं: कृषि, निर्माण या उत्पादन क्षेत्र एवं सेवा क्षेत्र । सभी ऑफिस में बैठक वाली नौकरियाँ आम तौर पर सेवा क्षेत्र में आती हैं, जो सरकारी व गैर-सरकारी दोनों हो सकती हैं । अपवाद यहाँ भी होते हैं ।

अब जो परिस्थितियों में बदलाव हुआ है, उसमें समझने वाली बात यह है कि अब निर्माण या उत्पादन का क्षेत्र (Manufacturing Sector) सबसे तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र है । पिछले 10-15 सालों में हमने निजी सेवा क्षेत्र का बहुत विस्तार देखा था, अब वहाँ तो विस्तार की गति स्थिर ही रहेगी, लेकिन निर्माण क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ेगा । इसका अर्थ है कि अब सबसे अधिक रोजगार इस क्षेत्र में बढ़ेंगे यानि फेक्टरियों, खासकर सूक्ष्म व लघु – उद्योगों में अधिक रोज़गार होंगे । सरकार की मंशा और योजनाएँ तो यही कह रही है । सरकार स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया और मुद्रा बैंक जैसी योजनाओं पर इसीलिए ज़ोर दे रही है । उसकी अपेक्षा है कि देश के युवा कौशल या हुनर सीखे और या तो निर्माण व उत्पादन की इकाइयों में कम करें अथवा स्वयं के सूक्ष्म या लघु उद्योग लगाएँ, स्व-रोज़गार अपनायें ।

हालांकि, कई सेवा क्षेत्रों में भी अच्छी वृद्धि होती रहेगी, जैसे यातायात व परिवहन (रेल व सड़क), बैंकिंग व बीमा, शिक्षा व चिकित्सा, इलेक्ट्रोनिक सूचना व संचार तथा ऊर्जा संबंधी सेवाएँ । लेकिन, यह तो तय है कि अब कृषि पर निर्भर लोगों की संख्या घटेगी, वहाँ जो बड़ी संख्या में अकुशल श्रमिक लगे हैं, वे कम हो जाएंगे। किसानों को भी मशीनों को अपनाना होगा और वहाँ भी कुशल (skilled) लेबर लगेंगे ।

इस बदलाव का किशोरों व युवाओं के लिए खास सबक यह है कि, यदि आप पढ़ाई कर रहे हैं, तो या तो डिस्टिंक्शन (75%) से अधिक अंक लाने वाले विद्यार्थी बनिये, तभी उच्च-शिक्षा के जरिये अच्छा कैरियर बनाने की सोचिए; अन्यथा 10-वी या 12-वी तक पढ़ाई करके कोई न कोई अपनी रुचि का हुनर सीख लीजिये और हुनर के आधार पर अच्छा रोज़गार पाइए । हाँ, प्रथम व द्वितीय श्रेणी के विद्यार्थी भी यदि अपनी कम्यूनिकेशन स्किल और पेर्सनेलिटी अच्छी बनाते हैं, तो उन्हें भी सेवा क्षेत्र (service sector) के कई बढ़ते हुए रोजगारों में अवसर मिल जाएगा । लेकिन तृतीय श्रेणी से पास होने वालों को तो गंभीरता से हुनरमंद बनने का रास्ता अपनाना चाहिए ।

अच्छे विद्यार्थियों के लिए इस बात का फर्क अब घटता जाएगा कि वे आर्ट्स, साइन्स या कॉमर्स में से किस धारा के विद्यार्थी हैं । अब सभी धाराओं के अच्छे छात्रों को प्रतियोगिता के जरिये उच्च शिक्षा पाने या अच्छा रोज़गार पाने का मार्ग बराबरी से खुला मिलेगा । इसलिए बेहतर है कि विषयों का चयन करते समय आप काही-सुनी बातों के बजाय अपनी रुचि को अधिक महत्व दें ।                                             

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