भगवान के थे अवतार या थे कोई मनुष्य
भगवान के थे अवतार या थे कोई मनुष्य
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साईं बाबा कौन हैं? क्या यह भगवान के अवतार हैं या कोई साधारण मनुष्य जिसे लोगों ने भगवान बना दिया है। यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि द्वारिका-शारदा पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने विवादित बयान दिया है जिसमें उन्होंने कहा है कि शिरडी के साई बाबा अवतार नहीं हैं।

अगर शंकराचार्य की बातों पर यकीन करें तो सवाल यही उठता है कि फिर साईं बाबा कौन हैं। साई कहां से आए और कैसे बने भक्तों के साईं बाबा जिनके एक दर्शन पाकर भक्त अपना जीवन धन्य मानने लगते हैं। साईं बाबा कौन थे और उनका जन्म कहां हुआ था यह प्रश्न ऐसे हैं जिनका जवाब किसी के पास नहीं है। साईं ने कभी इन बातों का जिक्र नहीं किया। इनके माता-पिता कौन थे इसकी भी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

बस एक बार अपने एक भक्त के पूछने पर साईं ने कहा था कि, साईं बाबा ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा एक पुराने मस्जिद में बिताया जिसे वह द्वारका माई कहा करते थे। सिर पर सफेद कपड़ा बांधे हुए फकीर के रूप में साईं शिरडी में धूनी रमाए रहते थे। इनके इस रूप के कारण कुछ लोग इन्हें मुस्लिम मानते हैं। जबकि द्वारिका के प्रति श्रद्घा और प्रेम के कारण कुछ लोग इन्हें हिन्दू मानते है।

लेकिन साईं ने कबीर की तरह कभी भी अपने को जाति बंधन में नहीं बांधा। हिन्दू हो या मुसलमान साई ने सभी के प्रति समान भाव रखा और कभी इस बात का उल्लेख नहीं किया कि वह किस जाति के हैं। साईं ने हमेशा मानवता, प्रेम और दयालुता को अपना धर्म माना।

जो भी इनके पास आता उसके प्रति बिना भेद भाव के उसके प्रति कृपा करते। साई के इसी व्यवहार ने उन्हें शिरडी का साई बाबा और भक्तों का भगवान बना दिया। हलांकि साईं बाबा का साईं नाम कैसे पड़ा इसकी एक रोचक कथा है। कहा जाता है कि सन् 1854 ई. में पहली बार साई बाबा शिरडी में दिखाई दिए। उस समय बाबा की उम्र लगभग सोलह वर्ष  थी। शिरडी के लोगों ने बाबा को पहली बार एक नीम के वृक्ष के नीचे समाधि में लीन देखा।

कम उम्र में सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास की जरा भी चिंता किए बगैर बालयोगी को कठिन तपस्या करते देखकर लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। त्याग और वैराग्य की मूर्ति बने साईं ने धीरे-धीरे गांव वालों का मनमोह लिया। कुछ समय शिरडी में रहकर साईं एक दिन किसी से कुछ कहे बिना अचानक वहां से चले गए। कुछ सालों के बाद चांद पाटिल नाम के एक व्यक्ति की बारात के साथ साई फिर शिरडी में पहुंचे।

खंडोबा मंदिर के पुजारी म्हालसापति ने साईं को देखते ही कहा ‘आओ साईं’ इस स्वागत संबोधने के बाद से ही शिरडी का फकीर ‘साईं बाबा’ कहलाने लगा। शिरडी के लोग शुरू में साईं बाबा को पागल समझते थे लेकिन धीरे-धीरे उनकी शक्ति और गुणों को जानने के बाद भक्तों की संख्या बढ़ती गयी। साईं बाबा शिरडी के केवल पांच परिवारों से रोज दिन में दो बार भिक्षा मांगते थे।

वे टीन के बर्तन में तरल पदार्थ और कंधे पर टंगे हुए कपड़े की झोली में रोटी और ठोस पदार्थ इकट्ठा किया करते थे। सभी सामग्रियों को वे द्वारका माई लाकर मिट्टी के बड़े बर्तन में मिलाकर रख देते थे।

कुत्ते, बिल्लियां, चिड़िया निःसंकोच आकर खाने का कुछ अंश खा लेते थे, बची हुए भिक्षा को साईं बाबा भक्तों के साथ मिल बांट कर खाते थे। साईं ने अपने जीवनकाल में कई ऐसे चमत्कार दिखाए जिससे लोगों ने इनमें ईश्वर का अंश महसूस किया। इन्हीं चमत्कारों ने साईं को भगवान और ईश्वर का अवतार बना दिया। लक्ष्मी नामक एक स्त्री संतान सुख के लिए तड़प रही थी। एक दिन साईं बाबा के पास अपनी विनती लेकर पहुंच गई। साईं ने उसे उदी यानी भभूत दिया और कहा आधा तुम खा लेना और आधा अपने पति को दे देना।

लक्ष्मी ने ऐसा ही किया। निश्चित समय पर लक्ष्मी गर्भवती हुई। साईं के इस चमत्कार से वह साईं की भक्त बन गयी और जहां भी जाती साईं बाबा के गुणगाती। साईं के किसी विरोधी ने लक्ष्मी के गर्भ को नष्ट करने के लिए धोखे से गर्भ नष्ट करने की दवाई दे दी। इससे लक्ष्मी को पेट में दर्द एवं रक्तस्राव होने लगा। लक्ष्मी साईं के पास पहुंचकर साईं से विनती करने लगी। साईं बाबा ने लक्ष्मी को उदी खाने के लिए दिया। उदी खाते ही लक्ष्मी का रक्तस्राव रूक गया और लक्ष्मी को सही समय पर संतान सुख प्राप्त हुआ।

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