आखिर क्यों वारेन बफेट ने बेचे एयरलाइन कंपनियों के शेयर ?
आखिर क्यों वारेन बफेट ने बेचे एयरलाइन कंपनियों के शेयर ?
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महामारी कोरोना के संकट के इस दौर में कहा जाने लगा है कि लोगों के व्यवहार के लिहाज से सबकुछ बदल जाएगा और सबकुछ डिजिटल और वर्चुअल और रिमोट हो जाएगा. लेकिन यह ठीक वैसा ही होगा जैसा कहा जा रहा है, ऐसा भी नहीं है. मनुष्य एक सामाजिक प्रजाति है और जिस तरह की बातचीत मानवीय गतिविधियों के लिए जरूरी है वह डिजिटल लिंक और शारीरिक दूरी के साथ नहीं हो सकती है. दुनिया के सबसे सधे निवेशकों में से एक वारेन बफेट ने हर वर्ष निवेशकों से होने वाली बातचीत के नवीनतम अंक के तौर-तरीकों से यह जाहिर कर दिया है कि मेल-जोल का अपना मोल और महत्व है. लेकिन एक निवेशक के तौर पर उन्होंने एयरलाइंस कंपनियों के शेयर बेचकर जो संकेत दिए हैं, उनमें निवेशकों के सीखने के लिए बहुत कुछ है.  

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि किसी भी दौर में संकट का काल गुजर जाने के बाद ही पता चल पाता है कि उसके लिए किसकी तैयारी कैसी थी. शेयर बाजार और निवेश के मामले में तो यह बात अक्षरश: सत्य है. इन्वेस्टिंग यानी निवेश करना सरल है, लेकिन यह आसान नहीं है. एक बहुत अमीर व्यक्ति को चाहिए कि वह अपनी संतानों के लिए भी कुछ जरूरी रकम छोड़ दे, ताकि वे मेहनत से कोई काम करना चाहें तो धन की कमी आड़े नहीं आए. लेकिन इस भाव से तो बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहिए कि उन्हें जीवन में कमाने की जरूरत नही नहीं पड़े. अगर आप एक स्टॉक 10 वर्षों तक रखने की इच्छा नहीं रखते हैं तो आपको इसे 10 मिनट तक भी रखने के बारे में नहीं सोचना चाहिए. 

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अगर आपको नही पता तो बता दे कि ज्ञानवर्धक किताबों के बीच घिरे रहने से ही कोई बुद्धिमान और ज्ञानी हो सकता, तो दुनिया में सबसे ज्यादा बुद्धिमान लाइब्रेरियन होते. दशकों के दौरान वारेन बफेट ने अपने शेयर होल्डर्स को सालाना पत्र लिखे हैं. उन्होंने शेयरधारकों की सालाना आमसभा में जो बातें कहीं हैं उनमें ऐसी कहावतों का एक समृद्ध खजाना मिला है. यह कहावतें न सिर्फ निवेश और रकम के मामलों में गाइड करती हैं बल्कि आम जीवन में भी बहुत उपयोगी हैं. हर साल मई में होने वाली सालाना आमसभा इस बार रद कर दी गई, लेकिन बफेट के साथ सवाल-जवाब का सत्र आयोजित किया गया. हर साल की तरह इस बार भी ऑनलाइन ऑडिएंस थे. शायद पहले से ज्यादा थे. दिलचस्प बात यह है बफेट ने इस सत्र के आयोजन के लिए अपने गृह नगर ओमाशा, नेब्रास्का का वही विशाल ऑडिटोरियम चुना. अंतर सिर्फ यह था कि खचाखच भरी सीटों की जगह 18,000 सीटें खाली थीं. आयोजन का माहौल यह दिखा रहा था कि इस तरह का माहौल जूम या गूगल मीट के सिंथेटिक डिजिटल इवेंट के जरिये बनाना मुश्किल था. इसने पूरे माहौल को इस तरह से बना दिया कि लग रहा था कि यह सामान्य आयोजन के लिए ड्रेस रिहर्सल था. और ऐसा आभास हो रहा था कि ऑडिएंस अभी-अभी आने वाले ही हों.

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