करना चाहतें हैं अगर आप दोस्ती तो संभल जाइये
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पितामह भीष्म महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे लेकिन पांडव भी उनका बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने अपने जीवन का सार मृत्यु के समय युधिष्ठिर को बताया था। उन्होंने मित्रता के संबंध में भी कई सुझाव दिए जो आज हमारे लिए नसीहत हैं। 

महाभारत का युद्ध मित्रता और शत्रुता की नई परिभाषा के साथ लड़ा गया था। कौरव और पांडव, दोनों के ही मित्र थे जिन्होंने युद्ध में सहयोग किया। जानिए, पितामह भीष्म क्या कहते थे मित्रता के बारे में।

1- जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखते और विवेक से रहित हैं। ईश्वर में अविश्वास से तात्पर्य है- सत्य, न्याय, दया और चरित्र जैसे गुणों से रहित होना। इस श्रेणी के मित्र खुद के अलावा दूसरों को भी पतन की ओर लेकर जाते हैं। अत: ऐसे लोगों से दूर रहना चाहिए।

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2- जो व्यक्ति मेहनत नहीं करना चाहता, आलसी है, उससे कभी मित्रता न करें। जो उसके साथ मित्रता करेगा, उसका पतन अवश्य होगा। 

3- जो कपटी हो, जिसके मुख में राम और बगल में छुरी हो, जो द्वेष भाव रखता हो, उससे दूर रहें। ऐसे व्यक्ति से कभी मित्रता न करें।

4- जो नशे का आदी हो, जो मदिरा पीता हो, उसके साथ मित्रता न करें। उसके संग से संभव है कि एक दिन ये बुराइयां आप में भी प्रवेश कर जाएं। 

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5- जो अत्यधिक क्रोधी हो, बहुत जल्द आवेश में आ जाए, उससे दूर रहने में ही कल्याण है। ऐसे मित्र कब शत्रु बन जाएं, कहा नहीं जा सकता।

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