गुवाहाटी : राज्य के पूर्व मंत्री तथा अल्पसंख्यक विकास परिषद असम के अध्यक्ष मो. महिबूल हक ने मतदाता सूची और मतदाता पहचान कार्ड को एनआरसी के लिए अन्यतम दस्तावजे मानने की मांग करते हुए कहा है कि एनआरसी के नाम पर अराजकता फैल गई है। उन्होंने बीटीएडी के हिंसा पीड़ितों और राहत शिविरों में रह रहे लोगों के अलावा बाढ़ व दूसरे प्राकृतिक आपदाओं के शिकार लोगों का नाम बिना दस्तावेज के एनआरसी में जोड़ने की जरूरत बताई है। एनआरसी को लेकर तनाव में आए एक व्यक्ति की आत्म हत्या को लेकर मानवाधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाने के बाद संवाददाताओं से बातचीत करते हुए हक ने कहा कि एनआरसी मतदाता सूची के आधार अद्यतन होना चाहिए। क्योंकि मतदाता सूची में भारतीय नागरिको का ही नाम सूचिबद्ध किया जाता है। यह कहने पर कि कई अवैध नागरिकों का भी नाम सूची में शामिल हो गया है तो हक ने कहा कि यदि मतदाता सूची अवैध है तो अवैध सूची के आधार पर हुए मतदान से बनी सरकारें भी अवैध है।
उन्होंने सेवा केंद्रों पर कर्मचारियों की कमी का जिक्र करते हुए कहा कि अभी तक मात्र पांच लाख लोगों का डाटा अपलोड किया जा सका है। अगले 22 दिनों में 60 लाख करना है जो असंभव है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 30 जुलाई तक लिगेसी डाटा अपलोड करने का निर्देश दिया है जिससे देखते हुए सेवा केंद्रों पर जैसे -तैसे काम किया जा रहा है और पूरी तरह से अराजकता फैली हुई है। लोग परेशान है। क्योंकि जानकार लोगों को भी एनआरसी के लिए बनाए गए जटिल फार्म को भरने में पसीने छूट रहे हैं।
हक ने कहा कि ऐसे लोग जिनका सबकुछ बाढ़, हिंसा और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण नष्ट हो गया है, उनका क्या होगा यह स्पष्ट नहीं है। उन्होंने बोर्ड और विश्वविद्यालयों द्वारा जारी प्रमाण पत्र के अलावा प्राथमिक शिक्षा विभाग द्वारा जारी शैक्षणिक प्रमाण पत्र को भी स्वीकार करने की मांग उठाते हुए कहा कि जो लोग पांचवीं कक्षा तक पढ़े हैं वे बोर्ड का प्रमाण पत्र कहां से लाएंगे।