शहीद यमुना की ये इच्छा रह गई अधूरी, उससे पहले ही आ गई शहादत
शहीद यमुना की ये इच्छा रह गई अधूरी, उससे पहले ही आ गई शहादत
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कुपवाड़ा में शहीद हुए उत्तराखंड के हल्द्वानी निवासी सूबेदार यमुना प्रसाद पनेरू को पर्वतारोहण से इतना लगाव था कि वे रिटायर होने के बाद भी इससे जुड़े रहना चाहते थे। उनका सपना पहाड़ के युवाओं को पर्वतारोहण के लिए तैयार कर कुशल पर्वतारोही बनाना था। इसके लिए वह एक प्रशिक्षण केंद्र खोलना चाहते थे। वे इसी महीने के अंत में घर भी आने वाले थे। जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में तैनात गोरापड़ाव निवासी सूबेदार यमुना प्रसाद पनेरू बृहस्पतिवार सुबह पेट्रोलिंग के दौरान शहीद हो गए थे। वह कुपवाड़ा के गुरेज सेक्टर में तैनात थे।सेना में भर्ती होने तक यमुना प्रसाद ने नहीं सोचा था कि वह एक पर्वतारोही के रूप में विश्व के सबसे ऊंचे पर्वत एवरेस्ट की चोटी पर पहुंच कर भारत का झंडा फहराएंगे। सेना में भर्ती होने के कुछ समय बाद जब उन्हें पर्वतारोहण का अवसर मिला तो 2012 में उन्होंने एवरेस्ट की चोटी फतह कर ली। इसके बाद कंचनजंगा और नंदादेवी पर भी उन्होंने तिरंगा फहराया। 

पर्वतारोहण की उनकी कुशल क्षमता को देखते हुए 2013 में सेना ने उन्हें दार्जिलिंग स्थित हिमालयन माउंटेनियरिंग संस्थान में बतौर प्रशिक्षक नियुक्त किया। 2014 में यमुना प्रसाद प्रशिक्षण देने के लिए भूटान भी गए। अपनी काबिलियत के दम पर भूटान से आने के बाद उन्होंने जेसीओ का कमीशन निकाला और हवलदार से सूबेदार बने। पर्वतारोहण प्रेम और पहाड़ में पर्वतारोहण प्रशिक्षण की संभावना को देखते हुए यमुना प्रसाद सेना से रिटायर्ड होने के बाद युवाओं को प्रशिक्षण देकर पर्वतारोहण में विश्व स्तर पर उत्तराखंड को एक अलग पहचान देना चाहते थे, लेकिन इससे पहले ही यमुना प्रसाद ने पर्वतों की गोद में ही अंतिम सांस लेकर देश को गौरवान्वित कर दिया।शहीद के छोटे भाई भुवन चंद्र ने बताया कि पिछले साल दो माह की छुट्टी आने के बाद यमुना प्रसाद 30 अक्तूबर को वापस लौटे थे। अप्रैल में उन्हें फिर छुट्टी आना था लेकिन लॉकडाउन के कारण नहीं आ सके। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें की पांच जून को भुवन का बेटा होने पर उन्होंने भुवन को बधाई दी। उन्हें ताऊ बनने की इतनी खुशी थी कि वह जल्द से जल्द घर आना चाहते थे। और उन्होंने जून के आखिरी सप्ताह में छुट्टी आने की बात भी कही थी। तीन दिन पहले भी उन्होंने भुवन को फोन कर कहा था कि बच्चे के नामकरण पर वह खूब मिठाई बांटे और नामकरण में नहीं आ सकते लेकिन जल्द बच्चे के पास पहुंचेंगे।यमुना प्रसाद के शहीद होने से उनकी पत्नी ममता सदमे में है। ममता और उनके बच्चे बार-बार यमुना प्रसाद की फोटो देख कर रो पड़ते हैं और मां माहेश्वरी देवी बेसुध सी हो गई हैं। 2004 में पति दयाकृष्ण पनेरू की मौत के बाद उन्हें जवान बेटे की मौत का सदमा भी झेलना पड़ा। शहीद यमुना प्रसाद बेहद व्यवहारकुशल और हिम्मती व्यक्ति थे। छुट्टी में घर आने पर वह कभी आराम नहीं करते थे। घर के सारे काम खुद करने के साथ ही वह लोगों को पर्वतारोहण के साहसी किस्से सुनाकर उनका मनोबल बढ़ाते थे। 

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