उत्तराखंड में खतरनाक दर से सिकुड़ रही है धरती, भूकंप के रूप में सामने आ सकते हैं परिणाम
उत्तराखंड में खतरनाक दर से सिकुड़ रही है धरती, भूकंप के रूप में सामने आ सकते हैं परिणाम
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देहरादून: देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से टनकपुर के बीच करीब 250 किलोमीटर क्षेत्रफल की जमीन लगातार सिकुड़ती जा रही है, यहाँ की धरती 18 मिलीमीटर प्रति वर्ष की दर से सिकुड़ रही है. यह बात नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी नई दिल्ली के अध्ययन में सामने आई है. सेंटर के निदेशक डॉ. गहलोत ने बताया कि वर्ष 2013 से 2018 के बीच देहरादून (मोहंड) से टनकपुर के बीच करीब 30 जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) लगाए गए  थे.

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जिसके अध्ययन में पता चला कि यह पूरा भूभाग 18 मिलीमीटर की दर से सिकुड़ता जा रहा है, जबकि, पूर्वी क्षेत्र में यह दर 14 मिलीमीटर प्रति वर्ष पाई गई है. इस सिकुड़न से धरती के भीतर ऊर्जा का भंडार बन रहा है, जो कभी भी इस पूरे क्षेत्र में सात-आठ रिक्टर स्केल के भूकंप के रूप में सामने आ सकता है. क्योंकि इस पूरे क्षेत्र में पिछले 500 से अधिक वर्षो में कोई शक्तिशाली भूकंप का झटका नहीं आया है. अधिकारी ने बताया कि धरती इस तरह सिकुड़ती रही तो एक समय ये अपने भीतर सिमटी हुई तमाम ऊर्जा को बाहर फेंक देगी और तबाही मच जाएगी. 

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नेपाल के कुछ इलाकों में धरती के सिकुड़ने की दर इससे कुछ अधिक 21 मिलीमीटर प्रति वर्ष पाई गई है. यही वजह है कि वर्ष 1934 में बेहद शक्तिशाली आठ रिक्टर स्केल का नेपाल-बिहार भूकंप आने के बाद वर्ष 2015 में भी 7.8 रिक्टर स्केल का बड़ा भूकंप इलाके को दहला चुका है. हालांकि फ़िलहाल ये नहीं कहा जा सकता है कि भूकंप कब आएगा, लेकिन इतना जरूर तय है कि धरती का इस दर से सिकुड़ना चिंता का सबब है.

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