नागा साधू करते है सत्रह श्रंगार
नागा साधू करते है सत्रह श्रंगार
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कहा जाता है सबसे अधिक श्रंगार केवल महिलाएं ही करती है पर ऐसा नहीं है. उनसे भी अधिक श्रृंगार करने वाले ये नागा साधु होते है, महाकुम्भ जैसे महान पर्वों के चलते ये साधू बड़ी ही उत्सुकता के साथ श्रृंगार करते है . और इन महान पर्वों में उनके अद्भुत रूप की भव्यता का कोई अंत ही नहीं होता है.

जो  भक्तजनों को हरसाने वाला होता है कहा जाता है की शाही स्नान के बाद ये जब श्रंगार करते है तो इनके श्रृंगार के सामने महिलाओं का भी श्रृंगार फीका पड़ जाता है . कुंभ मेले में इन नागा साधुओं के बहुत बड़े -बड़े अखाड़े लगते है. इन अखाड़ों का दृश्य बहुत ही रोचक व हरसाने वाला होता है.इसमें कुछ धूनी लगाकर जप -तप करते है, कुछ भाव विभोर होकर नृत्य करते है , और कुछ वाद्य यंत्रों से अच्छी - अच्छी ध्वनि निकालते है, इन सभी साधुओं का दर्शन व उनके क्रिया कलाप को देख भक्तों के मन में अध्यात्म का भाव प्रगट होता है .

आपको इस महापर्व में शाही स्नान के दौरान विभिन्न अखाड़ों के नागा साधुओं के विभिन्न रूप देखने को मिलेंगें । इन अखाड़ों में नागा साधु भी अलग-अलग तरह के होते हैं। कुछ नरम दिल तो कुछ अक्खड़ स्वभाव के होते हैं। कुछ नागा साधुओं के तो रूप-रंग इतने डरावने होते हैं कि उनके पास जाने से ही डर लगता है।

नागाओं के सत्रह श्रृंगार- 

लंगोट, भभूत, चंदन, पैरों में लोहे या फिर चांदी का कड़ा, अंगूठी, पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, हाथों में चिमटा, डमरू या कमंडल, गुथी हुई जटाएं और तिलक, काजल, हाथों में कड़ा, बदन में विभूति का लेप और बाहों पर रुद्राक्ष की माला, ये सभी 17 श्रृंगार में शामिल होते हैं।

बताया जाता है की नागा संत कहते हैं. कि लोग नित्य क्रिया से निवृत होने के बाद खुद को शुद्ध करने के लिए गंगा जैसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करते हैं, लेकिन नागा सन्यासी शुद्धीकरण के बाद ही शाही स्नान के लिए निकलते हैं।

इस महाकुम्भ पहुंचे नागा सन्यासियों की एक खासियत यह भी है कि इनका मन बच्चे के समान निर्मल होता है। ये अपने अखाड़ों में हमेशा धूम मचाते है लोगो को अपने क्रिया कलाप से हरसाते है . इनका अखाड़ा इनकी अठखेलियों से हमेशा गूंजता रहता है।

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