ज़िन्दगी जैसे एक सज़ा सी हो गयी है ग़म के सागर में कुछ इस कदर खो गयी है तुम आ जाओ वापिस यह गुज़ारिश है मेरी शायद मुझे तुम्हारी आदत सी हो गयी है