जीवन में हैं परेशानी तो एक बार करे मां कामाख्या के दर्शन हर मनोकामना होगी पूरी
जीवन में हैं परेशानी तो एक बार करे मां कामाख्या के दर्शन हर मनोकामना होगी पूरी
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असम में है साक्षात् आदि शक्ति का आशीर्वाद जहां माता सती अपने श्रद्धालुओं की हर मुराद को पूरा करती हैं, यह शक्तिपीठ तंत्रसिद्धि के लिए लोकप्रिय मानी जाती है. यहाँ हर दिन माता के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए माता से प्रार्थना करते हैं. माता का स्थान असम की राजधानी दिसपुर से करीब 6 किलोमीटर दूर नीलांचल और नीलशैल पर्वतमाला पर स्थित है.

यह पवित्र स्थल इक्यावन शक्तिपीठ में से एक माना जाता है. इस शक्तिपीठ का बहुत महत्त्व है. यहां माता की महामुद्रा अर्थात् योनि कुंड प्रतिष्ठापित है. मान्यता है कि यह पवित्र स्थल सभी तांत्रिक, मांत्रिक और सिद्ध पुरूषों के लिए सिद्धभूमि की तरह हैं साल में एक बार अम्बूवाची योग के मौके पर माता का रजस्वला पर्व होता है. इस दौरान माता की विशेष आराधना की जाती है. अलग-अलग युगों में इसे अलग - अलग बार मनाने की मान्यता है. 

दरअसल माता के मंदिर के गर्भगृह की महामुद्रा से लगातार तीन दिनों तक जल प्रवाह के स्थान से रक्त निकलता है. यह अपने आप में एक अनोखा चमत्कार है. इस अवधि में माता के गर्भगृह के कपाट स्वतः बंद हो जाते हैं. प्राचीन कथा प्रचलित है कि राक्षस नरकासुर ने घमंड में चूर होकर माता भगवती कामाख्या को अपनी पत्नी के तौर पर पाने की इच्छा जताई इस पर माता ने उसके सामने शर्त रखी कि इसी रात में नील पर्वत के चारों ओर पत्थर से पथ का निर्माण करना और फिर विश्राम गृह का निर्माण करना आवश्यक होगा. 

यदि ऐसा नहीं हुआ तो नरकासुर का वध हो जाएगा. इसके बाद नरकासुर  ने सोपान तो बना दिए. लेकिन जैसे ही वह विश्राम गृह बनाने जा रहा था वैसे ही माता की माया से एक मुर्गे की आवाज से उसे रात्रि समाप्ति की सूचना मिली. तभी उसने मुर्गे को मारने के लिए उसका पीछा किया ऐसे में वह काफी दूर कुक्टाचकि तक पहुंचा. जहां उसने मुर्गे को मार दिया. बाद में भगवान श्री हरिविष्णु के द्वारा उसका वध कर दिया गया. इस तीर्थ को कौमारी तीर्थ भी कहा जाता है. कौमारी पूजा अनुष्ठान  का बहुत महत्व है. माना जाता है कि यहां माता आदि शक्ति कामाख्या कौमारी स्वरूप सदा विराजमान रहती हैं.

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