'परमवीर' ब्रिगेडियर होशियार सिंह दहिया की पुण्यतिथि आज, 1971 के जंग में दिखाया था अद्भुत शौर्य
'परमवीर' ब्रिगेडियर होशियार सिंह दहिया की पुण्यतिथि आज, 1971 के जंग में दिखाया था अद्भुत शौर्य
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नई दिल्ली: आज परमवीर चक्र से सम्मानित, ब्रिगेडियर होशियार सिंह दहिया की पुण्यतिथि है। उन्होंने भारत-पाक के बीच हुए 1971 के युद्ध में अदम्य सहस दिखाया था, जिसके लिए उन्हें आज भी गर्व के साथ याद किया जाता है। ब्रिगेडियर होशियार सिंह का जन्म 5 मई 1937 को हरियाणा के सोनीपत जिले के सिसाणा गांव में हिंदू जाट परिवार में चौधरी हीरा सिंह के यहाँ हुआ था। उन्होंने भारतीय सेना में समर्पण के साथ सेवा की और ब्रिगेडियर के रूप में रिटायर हुए। उन्हें भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। 6 दिसंबर 1998 को प्राकृतिक कारणों से उनका देहांत हो गया।

रोहतक के जाट कॉलेज में अपनी स्कूली शिक्षा और एक वर्ष का अध्ययन करने के बाद होशियार सिंह दहिया सेना में भर्ती हो गए। उन्हें 30 जून 1963 को इंडियन आर्मी के ग्रेनेडियर रेजिमेंट में कमीशन किया गया था। उनकी पहली तैनाती नेफ़ा (नॉर्थ-ईस्ट फ़्रंटियर एजेंसी) (NEFA) में थी । 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में, उन्होंने राजस्थान क्षेत्र से हिस्सा लिया था। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान तीसरे ग्रेनेडियर को 15-17 दिसम्बर 1971 से शकगढ़ सेक्टर में बसंतर नदी में एक पुल का निर्माण करने का जिम्मा सौंपा गया था। नदी दोनों तरफ से गहरी लैंड माइन से ढकी हुई थी और पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा भली प्रकार से संरक्षित थी। कमांडर 'सी' कंपनी मेजर होशियार सिंह को जर्पाल के पाकिस्तानी क्षेत्र पर कब्जा करने का आदेश दिया गया था। जब मेजर होशियार सिंह आगे बढे तो पाकिस्तानी सेना ने प्रतिक्रिया करते हुए जवाबी कार्यवाही की। हमले के दौरान मेजर होशियार सिंह एक खाई से दूसरी खाई में अपने जवानों का हौसला बढ़ने के लिए भागते रहे तेजी से खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। 

इसके परिणामस्वरूप मेजर होशियार सिंह की कंपनी ने पाकिस्तानी सेना के भारी हमलों के बावजूद दुश्मन को भारी क्षति पहुंचाई और उनकर सभी हमलों को नाकाम कर दिया। गम्भीर रूप से घायल होने के बावजूद मेजर होशियार सिंह ने युद्धविराम तक पीछे हटने से इंकार कर दिया। इस अभियान के दौरान मेजर होशियार सिंह ने सेना की सर्वोच्च परंपराओं में सबसे विशिष्ट बहादुरी, अतुलनीय लड़ाई भावना और नेतृत्व को प्रदर्शित किया था, जिसके लिए उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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