तालिबानी फतवों पर था मलाला को मलाल
तालिबानी फतवों पर था मलाला को मलाल
Share:

पाकिस्तान का खैबरपख्तूनख्वाह और यहां की स्वात घाटी। हर रोज़ यहां तालिबानी गोलियों की गूंजसुनाई पड़ती। हर दिन तालिबान एक नया फतवा जारी कर देता। अब यहां तालिबान ने लड़कियों के स्कूल जाने और डीवीडी डांस जैसी मनोरंजक गतिविधियों पर ही प्रतिबंध लगा दिया। ऐसे में एक आवाज़ तालिबान के फतवों को लेकर उठी। उसके कदम नहीं रूके और उसने वह कर दिया जो पाकिस्तान के साथ दुनिया के लिए एक मिसाल बना।

जी हां, मलाला यूसुफज़ई केवल सत्रह साल की एक ऐसी लड़की जिसने स्वात घाटी में आतंक के लिए दुनिया में कुख्यात तालिबान का विरोध किया। ऐसे में उसे तालिबान की यातनाओं और गोलियों का शिकार भी होना पड़ा लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और लड़कियों के स्कूल जाने के लिए प्रयास करती रही। 12 जुलाई वर्ष 1997 में स्वात घाटी में जन्मी मलाला यूसुफज़ई को आखिरकार महिलाओं और लड़कियों के लिए विश्व का प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिला।

मलाला यहांभी नहीं रूकी और उसने लड़कियों की शिक्षा के लिए प्रयास जारी रखे। मलाला ने अपने संघर्ष के तहत बीबीसी के लिए ब्लागिंग की और तालिबान के अत्याचारों औरमहिला शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने को लेकर काफी लिखा। इसके लिए उन्होंने अपना नाम गुलमकई रखकर लिखना प्रारंभ किया। 11 वर्ष की उम्र से ही उन्होंने लिखना प्रारंभ किया और अपनी डायरी लिखती रहीं।

उन्हें वर्ष 2011 के लिए इंटरनेशनल चिल्ड्रन एंड पीस अवार्ड के लिए नामित किया गया इसके बाद वर्ष 2013 में उन्हें यह अवार्ड प्रदान किया गया। तालिबान द्वारा कार में म्युजिक बजाना लड़कियों का खेलना और टीवी देखने पर तक पाबंदी लगाई ऐसे में मलाला ने वहां की महिलाओं को संगठित किया उन्हें जागृत कर उन्होंने अपना आंदोलन आगे बढ़ाया। वर्ष 2014 में उन्हें लड़कियों की शिक्षा के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -