महाराष्ट्र / कड़ापे। महाराष्ट्र का रायगढ़ जिला। अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। इसी रायगढ़ जिले में मौजूद है। माणगांव तहसिल। इस तहसिल में देवी महाकालिका का अति प्राचीन मंदिर प्रतिष्ठापित है। इस मंदिर में मां कालिका साक्षात् शिव के साथ वास करती हैं। मंदिर को श्री कालिका आई बापूजी वुवा मंदिर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि माता दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की हर मनोकामना को पूरा करती है।
यहां आकर श्रद्धालुओं का मन बेहद शांत हो जाता है। यह मंदिर मूल रूप से माणगांव तहसिल के शिरवली पोस्ट के अंतर्गत आता है। मंदिर बेहद भव्य है। यह एक उंची पहाड़ी पर प्रतिष्ठापित है। मंदिर में प्रतिष्ठापित माता की मूर्ति को सिंदूर का आकर्षक श्रृंगार किया जाता है और विभिन्न अवसरों पर माता को मुघौटा भी धारण करवाया जाता है। माता की इस मूर्ति के ही नीचे माता की एक अन्य प्रतिमा जमीन में स्थित है।
जमीन में अवस्थित माता की यह मूर्ति रौद्ररूपिणी है। इसलिए इसे जमीन से निकाला नहीं गया। माता की दोनों ही मूर्तियां स्वयंभू हैं। जिसमें सिंदूरवर्णी मूर्ति को बाहर निकालकर स्थापित किया गया है। दूसरी ओर माता के एक ओर विपरीत दिशा में भगवान बापूजी बुवा की मूर्ति को प्रतिष्ठापित किया गया है। भगवान शिव बापूजी बुवा के रूप में पूजे जाते हैं। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में असुरों का आतंक बढ़ गया था।
जिसके बाद देवताओं और ब्राह्मणों द्वारा प्रार्थना करने पर शिव ने इन असुरों का संहार किया। असुरों का संहार करने के बाद यहां के निवासियों ने शिव जी से यहीं निवास करने का निवेदन किया। तो भगवान अपने भक्तों का निवेदन टाल नहीं सके और वे यहां पर एक मूर्ति में विलीन हो गए। भगवान को उनके श्रद्धालुओं ने बापूजी बुवा के नाम से संबोधित किया।
एक बार यहां शक्ति अर्थात् माता पार्वती कालिका स्वंरूप में यहां पहुंची, किसी बात पर मां भगवान शिव से रूठकर यहां से जाने लगी लेकिन भगवान बापूजी वुवा द्वारा रोके जाने पर उन्होंने यहीं पर अपना निवास बना लिया। माता मूर्ति में प्रतिष्ठापित हो गई। यहां के श्रद्धालुओं ने विधि - विधान से माता का पूजन किया। प्रतिवर्ष वैशाख मास की अमावस्या को मंदिर में माता की जत्रा का आयोजन किया जाता है।
जत्रा में दूर - दूर से श्रद्धालु माता के मंदिर में दर्शनों के लिए उमड़ते हैं। खास बात यह है कि मंदिर में माता महाकालि मां श्री बापूजी वुवा के मंदिर से विपरित दिशा में प्रतिष्ठापित हैं। मंदिर में माता को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु सोलह श्रृंगार की सामग्री, प्रसादी और पुष्प अर्पित करते हैं, माता यहां आने वाले श्रद्धालु की हर मनोकामना पूरी करती हैं।
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