2050 तक बदल जाएगा दुनिया का नक्शा...बदल जाएगी पूरी शक्ल
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आबादी बढ़ाने में इंसान का कोई भी रिकॉर्ड नहीं है. 125 वर्ष लगे थे इंसानों को 100 से 200 करोड़ होने में. बीते वर्ष 15 नवंबर को धरती पर हम होमो सेपियंस की आबादी 800 करोड़ हो चुकी है. लेकिन 700 से 800 करोड़ होने में मात्र 12 वर्ष लगे. लेकिन अब 2050 तक 900 करोड़ होने में 27 वर्ष लग रहे हैं. यानी इंसानों की प्रजनन क्षमता कम होने लग जाएगी. जिसके कई कारण भी है. वह भी बेहद जरूरी. क्योंकि भविष्य में जिस चीज के लिए तरसेंगे वो है साफ-सुथरी हवा. 

UN DESA की वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉसपेक्ट्स 2022 की रिपोर्ट में यह भी बोला गया था कि 900 करोड़ की आबादी वर्ष  2037 में होने वाली है. 2058 तक तो 1000 करोड़ पार कर सकती है. लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है. इंसानों की बढ़ती आबादी के अपने फायदे और हानि हैं. जैसे कम आबादी को कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है.  अधिक आबादी होने पर ऊर्जा और संसाधनों का इस्तेमाल भी अधिक होता है. आर्थिक असंतुलन बनता है. भविष्य में ऐसी नीतियां बनानी पड़ने वाली है, जिससे बढ़ती आबादी को समाज, आर्थिक स्थिति और पर्यावरण के हिसाब से लाभ होने लग जाएगा. यहां जिस स्टडी की बात हो रही है, वो काफी गहन तरीके से की गई है. जिसमे कहा गया है कि कैसे पूरी दुनिया के 10 फीसदी रईस लोग अधिक खपत करते हैं. इनकी वजह से पर्यावरण को हानि भी पहुंचा रहा है. भुगतता है आम इंसान.

कई देशों की आबादी अपने उच्चतम स्तर पर: Earth4All के मॉडलर और साइंटिस्ट जोर्जेन रैंडर्स ने कहा कि इंसानों की सबसे बड़ी लग्जरी कार्बन और बायोस्फेयर की खपत को और भी ज्यादा बढ़ाना है. न कि उनकी आबादी है. जहां भी आबादी तेजी से बढ़ रही है, वहां पर पर्यावरणीय फुटप्रिंट्स प्रति व्यक्ति बेहद कम है. ऐसी जगहें जहां आबादी कई दशक पहले अपने उच्चतम स्तर पर बनी हुई है. 

अफ्रीका में तेजी से बढ़ी है आबादी की दर: इस नई स्टडी में दस देश चुने गए हैं. ये चीन से लेकर अमेरिका और अफ्रीका के सब-सहारन देश हैं. इस वक़्त अफ्रीकी देश जैसे- अंगोला, नाइगर, कॉन्गो और नाइजीरिया में आबादी बढ़ने की दर सबसे अधिक है. एशियाई देशों में सबसे अधिक दर अफगानिस्तान में है. वैज्ञानिकों ने इस सदी में आने वाली दो स्थितियों पर ध्यान दे दिया.

सदी के अंत तक 600 से 760 करोड़ हो जाएगी आबादी: पहली ये कि टू लिटिल टू लेट (Too Little Too Late). दुनिया 1980 से बहुत बदल चुकी है. जन्मदर, बचत, उधारी का स्तर, टैक्स रेट, इनकम मॉडल सब चेंज हो चुकी है. इसकी गणना के मुताबिक इस सदी के मध्य तक धरती पर इंसानों की आबादी 880 करोड़ जहो जाए. लेकिन बाद में यह 2100 तक घटकर 730 करोड़ हो सकती है. 

इसके कारण है वैश्विक असंतुलन, इकोलॉजिकल फुटप्रिंट, वाइल्डलाइफ का विलुप्त होना आगे चलकर आर्थिक स्थिति और आबादी को बर्बाद करने वाला है. सबसे अच्छी स्थिति जो कही जा रही है, वो है जायंट लीप (Giant Leap). यानी 2040 तक इंसानों का आंकड़ा 850 करोड़ होने वाली है. लेकिन सदी के अंत तक यह घटकर 600 करोड़ होने वाली है. कुल मिलाकर आबादी कम होने की सबसे बड़ी वजह है आर्थिक असंतुलन और जलवायु परिवर्तन होगा. 

UN DESA की रिपोर्ट में क्या दावा किया था?: इंसानों की आबादी के बढ़ने की दर बीते कुछ दशकों से गिरी है. लेकिन जिसके बावजूद 2037 तक हमारी आबादी 900 करोड़ और 2058 तक 1000 करोड़ हो सकती है. यह अनुमान UN DESA की वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉसपेक्ट्स 2022 की रिपोर्ट में भी लगाया जा चुका है. रॉकफेलर यूनवर्सिटी की लेबोरेटरी ऑफ पॉपुलेशन के जोएल कोहेन बोलते हैं कि क्या मैं धरती पर अतिरिक्त हूं? धरती हम इंसानों का बोझ कैसे सहने वाली है. इसके दो पक्ष हैं- पहला प्राकृतिक सीमाएं और इंसानों के पास मौजूद विकल्प. 

इंसान की फितरत- लालच और बेवकूफी पूर्ण हरकतें: जोएल का इस बारें में कहना है कि इंसानों की फितरत में बेवकूफीपूर्ण हरकतें करने और लालच की बुरी आदत है. अधिक ईंधन के लिए जीवाश्म ईंधन का दुरुपयोग होने वाला है. नतीजा ये कि कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन  अधिक होने वाला है.  इसके कारण से धरती पर ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ने वाली है. ग्लेशियर पिघलेंगे. समुद्र का जलस्तर बढ़ेगा. जमीन समुद्र में समाएगी. मौसम बदलेगा. गर्मी ज्यादा पड़ेगी. बेमौसम बारिश होगी. सर्दियां छोटी या लंबी हो सकती है. 

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