'जिसकी जितनी आबादी, उसके उतने अधिकार..', बिहार की जातिगत जनगणना पर राहुल गांधी का बयान, दिए ये तर्क
'जिसकी जितनी आबादी, उसके उतने अधिकार..', बिहार की जातिगत जनगणना पर राहुल गांधी का बयान, दिए ये तर्क
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नई दिल्ली: कांग्रेस सहित विपक्ष ने बिहार सरकार के जाति जनगणना परिणामों का स्वागत किया और केंद्र से राष्ट्रीय स्तर पर इसी तरह की कवायद करने का आग्रह किया। राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना के मुखर समर्थक, पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि बिहार के सर्वेक्षण से पता चला है कि राज्य में 84 प्रतिशत लोग अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) हैं। 

राहुल गांधी ने कहा कि उनकी आबादी के आधार पर ही उनके अधिकार प्रदान किए जाने चाहिए। राहुल गांधी ने ट्वीट करते हुए लिखा कि, 'केंद्र सरकार के 90 सचिवों में से केवल 3 OBC हैं, जो भारत के बजट का केवल 5 प्रतिशत संभालते हैं। इसलिए, भारत के जाति आंकड़ों को जानना महत्वपूर्ण है। जितनी अधिक जनसंख्या, उतने अधिक अधिकार - यह यह हमारी प्रतिज्ञा है।'' हालाँकि, राहुल को जेपी नड्डा संसद में जवाब दे चुके हैं, नड्डा ने बताया था कि,   भाजपा के 303 लोकसभा सांसदों में से 85 OBC से हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा कि देश में पार्टी के 27 प्रतिशत विधायक और 40 प्रतिशत MLC ओबीसी श्रेणी के हैं और आगे कहा कि लोकसभा में कांग्रेस पार्टी की कुल ताकत की तुलना में ओबीसी श्रेणी के अधिक सांसद हैं। लेकिन, राहुल सिर्फ सचिवों की संख्या लेकर चल रहे हैं, आखिर OBC बहुत बड़ा वोट बैंक है

अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की विरोधाभासी राजनीति:-

देश की आज़ादी के बाद से ही भारत में अल्पसंख्यकों की राजनीति होती आई है, अल्पसंख्यकों को अधिकार देना, उनके लिए विभिन्न योजनाएं शुरू करना, उन्हें संरक्षण देना आदि कई काम किए गए। कहा जाता था कि, अक्सर समाज में भेदभाव, हाशिए पर रहने और उत्पीड़न सहते हैं, इसलिए उन्हें बढ़ावा देना जरूरी है। 1993 में कांग्रेस सरकार (नरसिम्हा राव) के समय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया गया, और न्यायमूर्ति मोहम्मद सरदार अली खान को इसका पहला अध्यक्ष बनाया गया। इसके बाद कांग्रेस सरकार (मनमोहन सिंह) ने ही 2006 में देश में पहली बार अल्पसंख्यक मंत्रालय बनाया, और अब्दुल रहमान अंतुले इसके पहले मंत्री बने। इसके बाद कांग्रेस के सलमान खुर्शीद, के रहमान खान, भाजपा से नजमा हेब्तुल्ला, मुख़्तार अब्बास नकवी अल्पसंख्यक मंत्रालय के प्रमुख रहे। हालाँकि, गौर करने वाली बात ये है कि, अल्पसंख्यकों में मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, यहूदी, पारसी जैसे धर्म आते थे, लेकिन मंत्री एक ही समुदाय से बनाए गए। 2019 में भारत को पहली गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक मंत्री मिली, स्मृति ईरानी (पारसी)।

यही नहीं, अल्पसंख्यक राजनीति इस कदर चरम पर थी कि, 2011 में कांग्रेस सरकार ‘सांप्रदायिक हिंसा कानून विधेयक’ ले आई थी, जिसके नियम पढ़ने पर आपका खून भी खौल सकता है। संक्षेप में बता दें कि, यह कानून किसी भी तरह की सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति में बहुसंख्यकों को ही दोषी ठहरता है, फिर चाहे हिंसा किसी ने भी की हो। कानून का आधार ये था कि, चूँकि बहुसंख्यक आबादी में अधिक हैं, इसलिए वे ही कमज़ोर अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करेंगे। यहाँ तक कि, इस विधेयक की धारा 7 सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति में बहुसंख्यक समुदाय की किसी महिला के साथ अल्पसंख्यक समुदाय के किसी पुरुष द्वारा यदि बलात्कार किया जाता है तो वह अपराध की श्रेणी में नहीं रखता है। अब बहुसंख्यक समुदाय भारत में कौन है, ये सभी लोग अच्छे से जानते हैं। हालाँकि, उसी समय भाजपा ने पुरजोर तरीके से विरोध किया और ये विधेयक पारित होने से रोक दिया, वरना आज ये कानून होता और जुलूसों-शोभायात्राओं पर चलने वाले पत्थरों से लेकर, बहुसंख्यकों की बहन-बेटी के साथ होने वाले बलात्कार तक के दोषी खुद बहुसंख्यक ही होते। हालाँकि, उस समय तक कांग्रेस ने यह नारा नहीं दिया था कि, जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी, क्योंकि तब बात धर्म के नाम पर अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक तय करने की थी और पार्टी ने अल्पसंख्यकों को बढ़ावा और मदद देना चुना क्योंकि वे बेचारे कम संख्या में हैं। 

आज जब उस 'बहुसंख्यक वर्ग' को जातियों के नाम पर तोड़ दिया गया है, तो उन छोटे-छोटे टुकड़ों को मैनेज करने बेहद आसान हो गया है और 70 सालों से चली आ रही अल्पसंख्यकों की राजनीति बहुसंख्यक जातियों पर शिफ्ट होती नज़र आ रही है। लेकिन, याद रखिएगा, धर्म के लिहाज से ये राजनीति अब भी अल्पसंख्यकों के पक्ष में ही चलेगी। बीते दिनों ही विदेश यात्रा पर राहुल गांधी बोल चुके हैं कि, भारत में 'अल्पसंख्यकों पर अत्याचार' होता है, यहाँ वे धर्म की बात कर रहे थे, कम आबादी वाली जातियों ब्राह्मण, राजपूत, कुर्मी, कायस्थ, यादव, भूमिहार, मुसहर, कुशवाह, मल्लाह, बनिया की नहीं। फिर जातिगत जनगणना के बाद जब उन्होंने कहा है कि, जिसकी जितनी संख्या, उतनी भागीदारी, तब वे जाति के आधार पर बात कर रहे हैं, यानी यहाँ भी कम आबादी वाली जातियों ब्राह्मण, राजपूत, कुर्मी, कायस्थ, यादव, भूमिहार, मुसहर, कुशवाह, मल्लाह, बनिया की बात नहीं कर रहे, यहाँ वे बात कर रहे हैं OBC की, जिसमे तमाम धर्मों की जातियां शामिल हैं। 

अब थोड़ा OBC का गणित भी समझ लीजिए:-

बता दें कि बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी OBC की लिस्ट में कुल 179 जातियों को शामिल किया है, जिसमे से 118 जातियाँ अकेले मुस्लिमों की है। बंगाल में OBC आरक्षण को दो हिस्सों में विभाजित किया गया है। इसमें कुल 179 जातियों को OBC लिस्ट में शामिल किया गया है। इसमें A वर्ग में अति पिछड़ों को रखा गया है। जिसमे 89 में से 73 जातियां मुस्लिम और केवल 8 हिंदू जातियां हैं। वहीं B श्रेणी में पिछड़ी जातियों को रखा गया है, इसकी सूची में कुल 98 जातियां है, जिसमें 53 हिंदू और 45 मुस्लिम जातियां हैं। यानी बंगाल में कुल 179 पिछड़ी जातियों में से 118 जातियां तो मुस्लिमों की ही है, बाकी 61 पिछड़ी जातियां हिन्दुओं की है। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) ने तो अपनी जांच में ये तक कहा है कि, ममता सरकार ने बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं तक को OBC आरक्षण दे रखा है। पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट बताती है कि,  OBC की A कैटेगरी (अति पिछड़े) में मुस्लिमों को सरकारी नौकरी में 91.5 फीसद का एकतरफा आरक्षण मिल रहा है। वहीं, हिंदू OBC महज 8.5 प्रतिशत में ही गुजारा करने को मजबूर है। पिछड़ा आयोग ने यह भी दावा किया था कि बंगाल के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले 90% छात्र मुस्लिम OBC श्रेणी के हैं। अब जो राहुल कह रहे हैं कि, जिसकी जितनी संख्या उसकी उतनी हिस्सेदारी, तो OBC को बेशक लाभ मिलना चाहिए, लेकिन मिलेगा या नहीं, ये एक बहुत बड़ा सवाल है। क्योंकि, अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक की राजनीति को राजनेता अपने फायदे के अनुसार इस्तेमाल करते रहते हैं, धर्म के आधार पर 'अल्पसंख्यकों' की वकालत करते हैं और जातियों के नाम पर 'बहुसंख्यकों' की, और हम कहते रह जाते हैं कि, अंग्रेज़ों ने हममे फूट डाल कर हमपर राज किया था।  वैसे, घी तो उनकी रोटी में दोनों तरफ लगा हुआ है, जो धार्मिक अल्पसंख्यक होने के नाते भी लाभ लेंगे, और बंगाल की तरह OBC जातियों में शामिल होकर OBC आरक्षण का भी आनंद उठाएंगे, बाकी जातियों को तो अभी पूरी बात (एजेंडा) समझने में ही सालों लग जाएंगे 

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