थकने के कहाँ निशाँ होते हैं
थकने के कहाँ निशाँ होते हैं
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आसमानों में उड़ते परिंदे 
थोड़े खुश थोड़े चहचहाते से
अपनी ही मस्ती में मस्त होकर
नापते हैं दूरियां खोलकर बाहें

पंखों की ऊँची उड़ानों से
हौंसले जवां होते हैं
बुलंदियाँ जहाँ आँखों में हों
थकने के कहाँ निशाँ होते हैं

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