कभी देखा नही साँवरे पर मन में तेरी ही सूरत बसी है गर्व करती हूँ खुद पर तेरी किरपा की नजर मुझ पर है जान पहचान कितने ही जन्मों की मुझे लगती है सांवरी सलोनी छवि अपनी सी लगती है कितनी तड़पी हूँ तेरी बस इक नजर को साँवरे नैन मेरे थक के श्यामा हो गए है बाँवरे जान पाई हूँ मैं अब तुम तो मेरे ही हो दूर नही हमसे तुम तो मुझ में ही समाए हो दुनिया भर की ठोकरों से थक के जब है चूर हुए तब कहीं जाकर के तेरे दर में शरण पाए है अब तो आजा साँवरे ये नैन भी पथरा गए हम तो तेरी राह में पलकें कब से बिछाएं हैं.