शीर्ष पर पहुँच कर भी हमेशा सरल स्वभाव के रहे सर्वपल्ली डाॅ. राधाकृष्णन
शीर्ष पर पहुँच कर भी हमेशा सरल स्वभाव के रहे सर्वपल्ली डाॅ. राधाकृष्णन
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सारा देश आज शिक्षक दिवस का उल्लास मना रहा है। देश में हर कहीं सभी अपने गुरूओं को कोटि-कोटि प्रणाम करने में लगे हैं। यही नहीं मगर सभी इस दौरान अपने गुरू और शिक्षक को याद करना नहीं भूल रहे। यही नहीं यह भी कहा गया कि भारत के राष्ट्रपति पद पर रहने के बाद भी सर्वपल्ली डाॅ. राधाकृष्णन का जीवन चरित्र बेहद साधारण था। जी हां, डाॅ. राधाकृष्णन जीवनपर्यंत तक स्वयं को शिक्षक कहलाना ही पसंद करते रहे। यही नहीं देश में शिक्षक दिवस का यह दिन उनके योगदान के लिए याद किया जाता है। तमिलनाडु में चेन्नई के समीप ही तिरूतनी क्षेत्र में 5 सितंबर 1888 को उनका जन्म हुआ था।

सर्वपल्ली डाॅ. राधाकृष्णन एक विद्वान थे। उनमें दर्शन भी गज़ब का था। वे प्रारंभ से ही मेधावी विद्यार्थी थे। उन्होंने दर्शनशास्त्र में एमए की उपाधि ली और फिर मद्रास रेजीडेंसी काॅलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हुए। डाॅ. राधाकृष्ण भारतीय दर्शनशास्त्र परिषद के अध्यक्ष भी रहे। यही नहीं भारतीय विश्वविद्यालय की तरह ही कोलंबो और लंदन विवि ने उन्हें मानद उपाधियों से सम्मानित किया।

डाॅ. राधाकृष्णन को अंग्रेज सरकार द्वारा सर की उपाधि से विभूषित किया गया। वे भारत के दूसरे राष्ट्रपति तो रहे ही साथ ही संयुक्त राष्ट्र में यूनेस्को कार्य समिति के अध्यक्ष रहे। यही नहीं वे मास्को में भारत के राजदूत भी नियुक्त किए गए। उन्हें भारतरत्न अलंकरण से सुशोभित किया गया। 

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