आज है सूरदास जयंती, जानिए क्यों सुरदास जी के पास आते थे श्री कृष्ण
आज है सूरदास जयंती, जानिए क्यों सुरदास जी के पास आते थे श्री कृष्ण
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आज सूरदास जयंती है. आप सभी को बता दें कि सूरदास का जन्म दिल्ली के सन्निकट सीही ग्राम में विक्रम सम्वत् 1535 की वैशाख शुक्ल पंचमी को हुआ था. ऐसे में आज 28 अप्रैल, मंगलवार का दिन सूरदास जयंती के रुप में मनाया जा रहा है और आज सूरदास जयंती के दिन हम आपको बताने जा रहे हैं वह कथा जिसमे आपको पता चलेगा कि सूरदास जी के पास श्री कृष्ण आते थे. आइए जानते हैं.

कथा- जी दरअसल एक बार श्री सूरदास जी एक कुएं में गिर गए और छ: दिनों तक उसमें पड़े रहे. वहीं सातवें दिन भगवान श्री कृष्ण ने प्रकट होकर इन्हें दृष्टि प्रदान की और इन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के रूप-माधुर्य को देखा. कहा जाता है इन्होंने भगवान श्री कृष्ण से यह वर मांगा कि ''मैंने जिन नेत्रों से आपका दर्शन किया उनसे संसार के किसी अन्य व्यक्ति और वस्तु का दर्शन न करूं.'' इस कारण कुएं से निकलने के बाद वह पहले की तरह अंधे हो गए. कहा जाता है इनके साथ बराबर एक लेखक रहा करता था और वह इनके मुंह से निकलने वाले भजन साथ-साथ लिखता जाता था. कई अवसरों पर लेखक के अभाव में भगवान श्री कृष्ण स्वयं इनके लेखक का काम करते थे.

जी हाँ, वहीं एक बार संगीत-सम्राट तानसेन बादशाह अकबर के सामने सूरदास का एक अत्यंत सरस और भक्तिपूर्ण पद गा रहे थे. बादशाह पद की सरसता पर मुग्ध हो गए और उन्होंने सूरदास से स्वयं मिलने की इच्छा प्रकट की. वह तानसेन के साथ सूरदास जी से मिलने गए. कहा जाता है उनके अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर सूरदास जी ने एक पद गाया जिसका अभिप्राय था कि ''हे मन! तुम माधव से प्रीति करो. संसार की नश्वरता में क्या रखा है.'' वहीं बादशाह उनकी अनुपम भक्ति से अत्यंत प्रभावित हुए और श्री सूरदास जी की उपासना सख्य भाव की थी. केवल इतना ही नहीं बल्कि यह उद्धव के अवतार कहे जाते हैं. जी हाँ और विक्रम सम्वत् 1620 के लगभग गोसाईं विट्ठलनाथ जी के सामने परसोली ग्राम में वह श्री राधा-कृष्ण की अखंड रास में सदा के लिए लीन हो गए थे.

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