नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने ऑटोरिक्शा की अधिकतम संख्या में बदलाव के आग्रह के दौरान दिल्ली-एनसीआर में वाहनों में बेतहाशा इजाफा, भयंकर जाम, पार्किंग की दिक्कत पर चिंता जताते हुए इस मामले में 'हम दो हमारे दो' के परिवार नियोजन फॉमूले को अपनाने की सलाह दी है. पीठ ने कहा है कि आखिर एक परिवार को चार-पांच वाहन रखने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए? परिवार नियोजन की तरह ही वाहनों के मामले में भी हमें 'हम दो, हमारे दो' का सिद्धांत लागू होना चाहिए.
शीर्ष अदालत ने शुक्रवार को कहा है कि राष्ट्रीय राजधानी में ऑटोरिक्शा की अदालत को लेकर लगे पाबंदी को तब ही हटाया जा सकता है, जब इसे लेकर जमीनी आंकड़े एकत्रित किए जाएं और यह पता लगाया जाए कि शहर की सड़कें कितनी गाड़ियों को सहन करने में सक्षम हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली में पहले से ही काफी भीड़ है और यहां 32 लाख कारें मौजूद हैं. ऐसी स्थिति में ऑटो रिक्शाओं की संख्या में इजाफा होने पर और ज्यादा जाम की दिक्कत देखने को मिल सकती है और वाहनों की गति पर भी बुरा प्रभाव देखने को मिल सकता है.
जस्टिस अरूण मिश्रा और जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि इसमें दिल्ली सरकार का दृष्टिकोण जानना भी जरुरी है. इस मामले में बजाज ऑटो ने याचिका दाखिल करते हुए ऑटोरिक्शा की संख्या पर लगी रोक को हटाने की मांग की थी. कोर्ट ने कहा है कि शहर में पार्किंग की दिक्कत भी है और निजी वाहनों की तादाद को भी विनियमित करने की जरुरत है.
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