मुर्दों को जीवित कर देने वाली बावड़ी
मुर्दों को जीवित कर देने वाली बावड़ी
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दैत्यों का स्वभाव तो सदैव से शक्ति संपन्न होते ही देवताओं तथा मनुष्यों को पीड़ित करना रहा है। ब्रह्माजी से वर पाने के उपरांत तारकासुर के तीन पुत्र तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली ने मयदानव के द्वारा तीन पुर (त्रिपुर) तैयार करवाए। 

उन तीनों पुरों में एक सोने का, एक चांदी का और एक लोहे का था। ये तीनों नगर आकाश में इधर-उधर आ-जा सकते थे। इनमें बड़े-बड़े भवन, चौड़ी-चौड़ी सड़कें और बाग-बगीचे इत्यादि मौजूद थे। करोड़ों दानव योद्धा उनमें निवास करने लगे। सुख-सुविधा तो उन पुरों में इतनी थी कि उनमें रहने वाले जैसी इच्छा करते उनकी उस कामना को मयासुर अपनी माया से उसी समय पूरी कर देता

इतना ही नहीं, तारकाक्ष के पुत्र हरि ने तपस्या करके ब्रह्माजी से वर मांग कर मुर्दों को जीवित कर देने वाली बावड़ी बनवाई। दैत्य लोग जिस रूप और जिस वेष में मरते थे, उस बावड़ी में डालने पर वे उसी रूप, उसी वेष में जीवित होकर निकल आते थे। इस प्रकार जब महादेव जी ने देवताओं को अभयदान दे दिया तब ब्रह्माजी ने हाथ जोड़ कर कहा, सर्वेश्वर! आपकी कृपा से प्रजापति के पद पर प्रतिष्ठित होकर मैंने दानवों को एक महान वर दे दिया था 

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