दक्षिण भारत जहां समुद्र की लहरें चट्टानों से टकराकर प्रकृति का सुंदर दृश्य प्रकट करती हैं। यहां शक्ति साक्षात् कन्या कुमारी स्वरूप में प्रतिष्ठापित हैं। तमिलनाडु प्रांत के दक्षिण तट पर प्रतिष्ठापित यह शहर हिंद महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का संगम स्थल है। यहां पर कई सागर अपने विविध रंगों में मौजूद हैं। देश के दक्षिणी छोर पर प्रतिष्ठापित श्री कन्याकुमारी मंदिर वर्षों से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। साक्षात् भगवान सूर्य भी मां कन्याकृमारी के चरणों में वंदन करते हैं। मां का यह मंदिर अतिप्राचीन काल से प्रतिष्ठापित है।
दरअसल यहां पर माता ने बानासुरन का वध किया था, भगवान शिव ने उसे वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अतिरिक्त वह किसी के हाथ से नहीं मरेगा, यही नहीं मां को लेकर एक अन्य कथा भी प्रचलित है। दरअसल कुमारी शक्ति को देवी का अवतार माना जाता था। कुमारी ने दक्षिण भारत के एक भाग पर कुशलतापूर्वक शासन किया था। उसकी इच्छा थी कि वह शिव से विवाह करे। मगर देवर्षी नारद ने बानासुरन का कुमारी के हाथों वध करने की बात कही। शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस दौरान बानासुरन को कुमारी की सुंदरता के बारे में जानकारी मिली तो उसने उस कन्या के सामने विवाह प्रस्ताव रखा।
ऐसे में कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। ऐसे में उस असुर और देवी मां के बीच युद्ध हुआ। बानासुरन को मृत्यु की प्राप्ति भी हुई। मगर इतने में भगवान शिव से माता के विवाह का समय बीत गया और यह स्थल जहां पर विवाह की तैयारी हो रही थी वह रंग-बिरंगी रेत में परिवर्तित हो गई। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर निर्मित हुआ है। यह स्थल बेहद जागृत स्थल है। यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां माता का कुंवारी कन्या के तौर पर पूजन होता है।