वर्तमान में कोरोना वायरस को पूरी दुनिया ने अपनी चपेट में ले लिया है. वही, अब महामारी हमारी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था के साथ रहन-सहन, जीवन जीने के तरीके और कार्य व्यवहार में 360 डिग्री का बदलाव लाती है. ये सब आज हम देख रहे हैं. ये बदलाव कितना स्थायी रूप ले पाते हैं, ये अभी भविष्य के गर्त में समाया हुआ है, लेकिन अतीत के अनुभवों के आधार पर कोविड-19 के हर क्षेत्र में पड़ने वाले स्थायी असर की तस्वीर पेश की जा सकती है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि 1918 में फैले स्पेनिश फ्लू ने पांच करोड़ जिंदगियां लील ली. उस समय की दुनिया की आबादी में यह 2.5 फीसद हिस्सेदारी थी. इसमें 18 लाख भारतीय मारे गए थे. यह किसी भी देश में मौतों का सर्वाधिक आंकड़ा था. अपने तीन हमलों में इसने दुनिया को झकझोर दिया.1918 के शुरुआती महीनों में इसका पहला लेकिन हल्का प्रकोप हुआ. अगस्त के आखिरी दिनों में दूसरा घातक प्रहार किया. 1919 के शुरुआती महीनों में इसका तीसरा और आखिरी हमला हुआ जिसकी भयावहता पहले और दूसरे चरण के मिले-जुले स्तर की रही.
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इसके अलावा मध्य सितंबर और मध्य दिसंबर 1918 के बीच के 13 हफ्तों में इसने सबसे ज्यादा जानें लीं. 14वीं सदी में ब्लैक डेथ महामारी के बाद अब तक ज्ञात इंसानी इतिहास में ये सबसे खतरनाक महामारी रही. कोविड-19 से समानताएं स्पैनिश फ्लू और कोविड-19 अलग रोग हैं, लेकिन इसमें कई समानताएं हैं. सांस से फैलते हैं. सतह को छूने से संक्रमण होता है. दोनों वायरस जनित हैं. दोनों बहुत संक्रामक हैं. दोनों को भीड़ का रोग (क्राउड डिजीज) कहते हैं.
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