राजनीतिक सक्रियता से अधिक सोशल रिफाॅर्म है गैंग रेप की मुक्ति का मार्ग!
राजनीतिक सक्रियता से अधिक सोशल रिफाॅर्म है गैंग रेप की मुक्ति का मार्ग!
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दिल्ली में एक बार फिर दो बच्चियों से गेंग रेप की वारदात हुई तो हर ओर शोर मचने लगा। आखिर दिल्ली में रेप कब थमेगा। दिल्ली में कानून व्यवस्था ठीक नहीं है। प्रधानमंत्री क्या कर रहे हैं। सीएम केजरीवाल ठीक कह रहे हैं क्या। इस तरह के तमाम सवाल मीडिया में उठाए जाने लगे। इन सवालों से आम आदमी झकझोर उठा लेकिन क्या केवल दिल्ली में ही रेप हो रहे हैं। भारत के अन्य क्षेत्रों और ग्रामीण इलाकों में घटने वाली घटनाऐं प्रकाश में ही नहीं लाई जाती हैं। एक बच्ची के साथ दिल्ली में रेप हो जाता है और देशभर में केंडल लाईट मार्च निकाले जाने का माहौल बना दिया जाता है।

मगर क्या अन्य क्षेत्रों में महिलाऐं सुरक्षित हैं। हम केवल दिल्ली के हालात की बात करते हैं मगर अन्य क्षेत्रों में नवरात्रि उत्सव के दौरान होने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं को हम रोक पा रहे हैं। आखिर छेड़छाड़ की इन घटनाओं पर लगाम लग पा रही है। एनडीए ने जब लोकसभा में अपना चुनाव प्रचार अभियान प्रारंभ किया था तो उसने यूपीए के खिलाफ बढ़ते बलात्कार के घटनाक्रमों को भी चुनावी मसला बनाया था लेकिन एनडीए कार्यकाल के दौरान ही दिल्ली में बलात्कार की घटनाऐं बढ़ने लगी हैं हा, इसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कुछ सवाल पूछकर अपनी कार्रवाई की तसल्ली करने लगे हैं लेकिन उनके ही कार्यकाल में आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता को आप कार्यकर्ता के साथ अवैध संबंधों के मामलों पर बचाकर निकाल लिया गया। आनन-फानन में राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष पद की पट्टी बदल दी गई। इस मसले को भी राजनीति के गलियारों में उछाला गया। 

दिल्ली और मुंबई में बलात्कार या गैंग रेप की वारदात पर विरोध की हवा बना दी जाती है लेकिन अन्य शहरों की ओर झांककर तक नहीं देखा जाता है। हालांकि बलात्कार से जुड़े मामलों और अन्य मामलों में समाज भी उतना ही जिम्मेदार माना जा सकता है। जिस तरह से समाज में मूल्यों का पतन हो रहा है। हम पाश्चात्य, भारतीय और कई सभ्यताओं के मिश्रीत प्रभाव में जी रहे हैं।

हमें हमारी जड़ों से ही काटने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में बलात्कार की घटनाऐं बढ़ना स्वाभाविक है। हमें जो चाहिए था वह हमें नहीं मिला तो उसकी त्वरित प्रतिक्रिया सामने आने लगती है। ऐसे में इन घटनाओं के साथ ही वैमनस्य का भाव भी बढ़ता है। राजनीतिक छींटाकशी, पुलिस का राजनीतिकरण होने के कारण देश लोकतंत्र से भीड़तंत्र की ओर जा रहा है। यह देखने में आया है कि छोटी बच्चियों को बलात्कार का शिकार बनाया जा रहा है।

दूसरी ओर बलात्कार करने वाले आरोपी कम उम्र के लड़कों के तौर पर सामने आ रहे हैं आखिर यह सब क्यों हो रहा है। इसका समाधान किस तरह से संभव है। इस पर विचार करने की आवश्यकता है। यह बात भी गौर करने योग्य है कि हर दिन अखबारों के फ्रंट पेज पर आने वाली आपराधिक गतिविधियों का असर मानव मन पर पड़ता है।

इसी तरह से निजी समाचार चैनलों द्वारा टीआरपी के लिए परोसे जाने वाली हाईप्रोफाईल आपराधिक घटनाऐं लोगों में अपराध की वृत्ति को जन्म देती हैं। इस तरह की बातों से बचा जाना जरूरी है। दूसरी ओर बलात्कार जैसी नृशंस घटनाओं को लेकर की जानी वाली कार्रवाईयों में तेजी की आवश्यकता है। हालांकि इस तरह के मसलों पर कठोर दंड के प्रावधान के स्थान पर ह्यूमन सायकोलाॅजी और समाज की सोशल थिकिंग बदलना ज़्यादा कारगर साबित होगा। 

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