शनि देव को करना चाहते हैं अगर प्रसन्न तो करें ये उपवास
शनि देव को करना चाहते हैं अगर प्रसन्न तो करें ये उपवास
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आकाशगंगा के सभी ग्रहों में शनि ग्रह का मनुष्य पर सबसे हानिकारक प्रकोप होता है। शनि की कुदृष्टि से राजाओं तक का वैभव पलक झपकते ही नष्ट हो जाता है। शनि की साढ़े साती दशा जीवन में अनेक दुःखों, विपत्तियों का समावेश करती है। अतः मनुष्य को शनि की कुदृष्टि से बचने के लिए शनिवार का व्रत करते हुए शनि देवता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। श्रावण मास में शनिवार का व्रत प्रारंभ करने का विशेष महत्व है।

शनिवार का व्रत कैसे करें?
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नदी या कुएँ के जल से स्नान करें। 
तत्पश्चात पीपल के वृक्ष पर जल अर्पण करें। 
लोहे से बनी शनि देवता की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराएँ। 
फिर इस मूर्ति को चावलों से बनाए चौबीस दल के कमल पर स्थापित करें।
आकाशगंगा के सभी ग्रहों में शनि ग्रह का मनुष्य पर सबसे हानिकारक प्रकोप होता है। शनि की कुदृष्टि से राजाओं तक का वैभव पलक झपकते ही नष्ट हो जाता है। शनि की साढ़े साती दशा जीवन में अनेक दुःखों, विपत्तियों का समावेश करती है।      

इसके बाद काले तिल, फूल, धूप, काला वस्त्र व तेल आदि से पूजा करें। 
पूजन के दौरान शनि के निम्न दस नामों का उच्चारण करें- कोणस्थ, कृष्ण, पिप्पला, सौरि, यम, पिंगलो, रोद्रोतको, बभ्रु, मंद, शनैश्चर। 
पूजन के बाद पीपल के वृक्ष के तने पर सूत के धागे से सात परिक्रमा करें। 

इसके पश्चात निम्न मंत्र से शनिदेव की प्रार्थना करें
शनैश्चर नमस्तुभ्यं नमस्ते त्वथ राहवे।
केतवेअथ नमस्तुभ्यं सर्वशांतिप्रदो भव॥

इसी तरह सात शनिवार तक व्रत करते हुए शनि के प्रकोप से सुरक्षा के लिए शनि मंत्र की समिधाओं में, राहु की कुदृष्टि से सुरक्षा के लिए दूर्वा की समिधा में, केतु से सुरक्षा के लिए केतु मंत्र में कुशा की समिधा में, कृष्ण जौ, काले तिल से 108 आहुति प्रत्येक के लिए देनी चाहिए। फिर अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन कराकर लौह वस्तु धन आदि का दान अवश्य करें।

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