स्वर्ण मंदिर सिखों का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है
स्वर्ण मंदिर सिखों का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है
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स्वर्ण मंदिर सिखों का सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। जिस तरह हिंदुओं के लिए अमरनाथ जी और मुस्लिमों के लिए काबा पवित्र है उसी तरह सिखों के लिए स्वर्ण मंदिर महत्त्व रखता है। सिक्खों के लिए स्वर्ण मंदिर बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसे "अथ सत तीरथ" के नाम से भी जाना जाता है। सिखों के पांचवें गुरु अर्जुनदेव जी ने स्वर्ण मंदिर (श्री हरिमंदिर साहिब) का निर्माण कार्य पंजाब के अमृतसर में शुरू कराया था। 

स्वर्ण मंदिर का इतिहास

कहा जाता है कि हरिमंदिर साहिब का सपना तीसरे सिख गुरु अमर दास जी का था। लेकिन इसका मुख्य कार्य पांचवें सिख गुरु अर्जुनदेव जी ने शुरू कराया था। स्वर्ण मंदिर को धार्मिक एकता का भी स्वरूप माना जाता है। एक सिख तीर्थ होने के बावजूद हरिमंदिर साहिब जी यानि स्वर्ण मंदिर की नींव सूफी संत मियां मीर जी द्वारा रखी गई है। 

अमृतसर सरोवर की रचना

स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ एक सरोवर है जिसे अमृतसर सरोवर या अमृत सरोवर कहते हैं। इस सरोवर का निर्माण कार्य अर्जुनदेव जी ने पूरा कराया था। इस स्थान को बेहद महत्त्वपूर्ण और ऐतिहासिक माना जाता है।

स्वर्ण मंदिर के विशेष तथ्य

• स्वर्ण मंदिर को सिखों का तीर्थ माना जाता है। 
• पहली संपूर्ण गुरु ग्रंथ साहिब स्वर्ण मंदिर में ही स्थापित की गई है। 
• बाबा बुड्ढा जी स्वर्ण मंदिर के पहले पूजारी थे। 
• स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने के चार द्वारा हैं। 
• स्वर्ण मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा किचन है जहां प्रतिदिन करीब 1 लाख लोगों के लिए निशुल्क भोजन कराया जाता है। यह भोजन लंगर (एक सामूहिक भोज) के रूप में लोगों तक पहुंचता है। 
• बैसाखी, लोहड़ी, प्रकाशोत्सव, शहीदी दिवस, संक्रांति जैसे त्यौहारों पर स्वर्ण मंदिर में भव्य कार्यक्रम होते हैं। विशेषकर खालसा पंथ की स्थापना दिवस यानि बैसाखी के दिन स्वर्ण मंदिर की अनुपम रूप देखने को मिलता है।

यूं तो स्वर्ण मंदिर में किसी भी जाति, धर्म के लोग जा सकते हैं लेकिन स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करते समय कुछ बुनियादी नियमों का अवश्य पालन करना होता है जो निम्न हैं: 

• मंदिर परिसर में जाने से पहले जूते बाहर निकालने होते हैं। 
• मंदिर के अंदर धूम्रपान, मदिरा पान आदि पूर्णत: निषेध हैं। 
• मंदिर के अंदर जाते समय सर ढंका होना चाहिए। मंदिर परिसर द्वारा सर ढंकने के लिए विशेष रूप से कपड़े या स्कार्फ प्रदान किए जाते हैं। सर ढकना आदर प्रकट करने का एक तरीका है। 
• गुरुवाणी सुनने के लिए आपको दरबार साहिब के अंदर जमीन पर ही बैठना चाहिए।

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