भगवान श्रीकृष्ण की आराधना का उत्सव है डोल ग्यारस
भगवान श्रीकृष्ण की आराधना का उत्सव है डोल ग्यारस
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डोल ग्यारस: भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को डोल ग्यारस का उत्सव मनाया जाता है। दरअसल यह उत्सव भगवान श्री कृष्णचंद्र के जन्मोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बाद मनाया जाता है। इसे जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन माता यशोदा ने उनका जलवा पूजन किया था।

भगवान श्री कृष्ण के डोल इस दिन निकाले जाते हैं साथ ही भगवान श्री कृष्ण की लालाओं और अन्य झाकियां भी डोल के साथ निकाली जाती है। भगवान श्री कृष्ण की मूर्तियों को डोल में विराजित कर शोभायात्रा निकाली जाती है। यह एक उत्सवी आयोजन होता है। दरअसल एकादशी के अवसर पर चंद्रमा ग्यारह कलाओं से युक्त होता है और उसकी 11 कलाओं का असर जीव के मन, शरीर, स्वभाव, स्वास्थ्य पर होता है।

ऐसे में श्रद्धालु इष्ट का पूजन कर और उपवास व व्रत के माध्यम से अपने मन को शांत और नियंत्रित करता है। पौराणिक मान्यताओं में भी जलझूलनी एकादशी का विशेष महत्व है। इस पर्व की धूम भगवान श्री कृष्ण मंदिरों और वैष्णव मंदिरों में रहती है। इस दिन से अनंत चतुर्दशी तक मंदिरों में विशेष पूजन होते हैं और अनंत चतुर्दशी पर भगवान अनन्त अर्थात श्री हरि विष्णु जी का पूजन किया जाता है। इस दिन श्री गणेशोत्सव का समापन होकर श्री गणेश मूर्तियों का विसर्जन भी किया जाता है।

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