श्रद्धा सुमन, मन बेलपत्री, श्रावण में शिव के लिए सबकुछ अर्पण कर दूं
श्रद्धा सुमन, मन बेलपत्री, श्रावण में शिव के लिए सबकुछ अर्पण कर दूं
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आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरूपूर्णिमा के तौर पर भी मनाया जाता है। इस दिन सभी गुरूओं का वंदन करते हैं मगर इस तिथि के बाद आता है भगवान भोलेनाथ का त्यौहार। हर ओर सदा शिव की भक्ति के जयकारे गूंजते हैं। श्रद्धालु भक्तिरस में सराबोर होकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो जाते हैं। श्रद्धालु अपने अपने अनुसार भगवान शिव की आराधना करते हैं। ऐसे में कोई एकासना का व्रत करता है तो कोई दाढ़ी,और बाल नहीं काटता तो कोई अपने पैरों में जूते-चप्पल ही नहीं पहनता। इतना ही नहीं सभी अपने अनुसार भगवान शिव की आराधना करते हैं।

श्रावण मास को सावन मास भी कहा जाता है। यह मास भगवान शिव को अति प्रिय है। दरअसल यह मास देवशयनी एकादशी के बाद में आता है। जिसके कारण सृष्टि संचालन भगवान हर अर्थात् शिव के पास होता है और भगवान श्री हरि विष्णु जी क्षीरसागर में विश्राम करने चले जाते हैं। ऐसे में हर ओर भगवान शिव जी की भक्ति का ही माहौल होता है। भगवान शिव की आराधना में यदि श्रद्धालु शिवलिंग पर केवल जल ही समर्पित कर दें तो श्रद्धालुओं की सारी मनोकामनाऐं पूर्ण हो जाती हैं। इतना ही नहीं श्रद्धालु शिव जी को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग का दूध, दही, शहद, शकर, घी युक्त पंचामृत से अभिषेक करते हैं।

यही नहीं भगवान शिव जी श्रद्धालुओं द्वारा  चढ़ाई गई किसी भी सामग्री से प्रसन्न होते हैं। महत्वपूर्ण यह है कि श्रद्धालुओं का भक्तिभाव से ओतप्रोत मन शिव की आराधना में लगा हो। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धालु बिल्व पत्र भी चढ़ाते हैं। श्रावण मास में भगवान शिव का 108 बिल्व पत्र या 51 बिल्व पत्र से अभिषेक करना और मंत्रोच्चारण पूर्व पूजन करना पुण्यदायक माना जाता है। इस दौरान श्रद्धालु ऊॅं नमः शिवाय मंत्र का जाप कर सकते हैं।

श्रावण मास में नित्य जल्दी उठकर सूर्योदय के समय स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान शिव का पूजन किया जाए तो पुण्य की प्राप्ति होती है। श्रावण मास में श्रद्धालु ज्योर्तिलिंगों की यात्राऐं भी करते हैं। ऐसे में द्वादश ज्योर्तिलिंग के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। श्रद्धालु इस मास में कावड़ यात्राऐं भी करते हैं।

कावड़िए तीर्थों या पवित्र नदियों का जल अपने कलश या कावड़ में भरकर ज्योर्तिलिंग की यात्रा करते हैं। और कावड़ में भरे गए तीर्थों व पवित्र नदियों के जल से ज्योर्तिलिंगों का जलाभिषेक करते हैं। एक नदी क्षेत्र के जल से दूसरे क्षेत्र या तीर्थ क्षेत्र के समीप विराजित ज्योर्तिलिंग का अभिषेक किया जाता है। ऐसा करने पर कावड़ियों को पुण्य की प्राप्ति होती है।

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