पितृ पक्ष में श्राद्ध का महत्व बहुत ही बड़ा होता है। यही नहीं श्राद्ध करने से पितर तर जाते हैं। तो दूसरी ओर दक्षिण की ओर ढलानवाला स्थान श्राद्ध के लिए सर्वोत्तम है। मगर गोबर से लीपी गई कीट आदि सामग्री आदि श्राद्ध के लिए सर्वोत्तम मानी गई है। वन, पुण्यस्थान और निचली मंजील पर श्राद्ध किया जा सकता है। दूसरी ओर वन, पुण्यस्थान या फिर पर्वत नदी, तीर्थस्थान, विशाल सरोवर, देवालय आदि स्थानों पर भी श्राद्ध करने में कोई स्थान तय नहीं है।
स्वामित्व यानि वन, पर्वत, नदी, तीर्थस्थान और विशाल सरोवर, देवालय, के साथ श्राद्ध करने में परेशानी आती है। श्राद्ध करने के लिए गंगा, सरस्वती, यमुना, पयोष्णी आदि नदियों महोदधी यानि बड़े समुद्र के किनारे प्रभासतीर्थ, पुष्करतीर्थ, प्रयाग, काशी, गया, मातृगया, कुरूक्षेत्र, गंगाद्वार आदि तीर्थ क्षेत्र में नैमिषक्षेत्र, धर्मारण्य, धेनुकारण्य आदि क्षेत्र में ब्रह्मसरोवर, महासरोवर के स्थान और अक्षय वट के नीचे या इस तीर्थ क्षेत्र में पूजन किया जा सकता है। तुलसी, आंवला वन की छांव आदि क्षेत्रों में भी अक्षय पुण्य प्राप्त किया जा सकता है। गया क्षेत्र में यदि प्रेत शिला पर पिंडदान किया जाए तो प्रेतत्वच नष्ट हो जाता है। आत्मा पितृलोक में गमन करती है। जब गया में शमी पत्र के समान पिंडदान होता है तो 7 गोत्रों में 100 या एक कुल तर जाता है। श्राद्ध, स्नान, दान और तप करने पर विभिन्न पुण्य फल प्राप्त होते हैं।
हालांकि श्राद्ध गोठ, हाथी बांधने के स्थान और अस्तबल के साथ पत्थर के चबूतरे और जल में श्राद्ध नहीं किया जा सकता है। ऐसे स्थानों पर श्राद्ध किया जाए तो पितर श्राद्धकर्म का विघात करते हैं। यही नहीं श्राद्ध पक्ष में रविवार को श्राद्ध करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही अष्टमी का श्राद्ध व्यापार में लाभदायक होता है। नवमी का श्राद्ध घोड़ों की प्राप्ति करवाता है। दशमी में श्राद्ध करने से गौधन की वृद्धि होती है।