कैलाश की तरह श्रीशैल पर्वत पर विराजते हैं मल्लिकार्जुन शिव
कैलाश की तरह श्रीशैल पर्वत पर विराजते हैं मल्लिकार्जुन शिव
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भगवान शिव के कई धाम हैं, इन धामों में बारह ज्योर्तिलिंग प्रमुख हैं। माना जाता है कि भगवान शिव अपने इन बारह ज्योर्तिलिंग में ज्योर्तिपुंज स्वरूप में साक्षात् प्रतिष्ठापित हैं। इन्हीं ज्योर्तिलिंग में से एक हैं आंध्रप्रदेश के श्री मल्लिकार्जुन शिव जी। जी हां, दक्षिण भारत के श्री शैल पर्वत पर भगवान शिव का वास है। यहां आते ही असीम शांति का अनुभव होता है। यही नहीं महाभारत के अनुसार श्री शैल पर्वत पर भगवान शिव का पूजन करने से अश्वमेघ यज्ञ करने का फल मिलता है। तो दूसरी ओर ग्रंथों में यह उल्लेख भी किया है कि श्री शैल के दर्शनमात्र से ही जन्मजन्मांतर के पुण्य मिल जाते हैं।

इस ज्योर्तिलिंग की प्रतिष्ठापना करीब पांच सौ वर्ष पूर्व श्री विजयनगर के महाराजा कृष्णराय ने की थी। उन्होंने कहा कि सुंदर मण्डप का निर्माण करवाया। इस दौरान मंदिर के शिखर को स्वर्ण मंडित किया गया। भगवान के दर्शन का लाभ छत्रपति शिवाजी महाराज भी ले चुके हैं। शिवलिंग स्थापना को लेकर बहुत ही रोचक कहानी सामने आई है।

जिसमें कहा गया है कि भगवान श्री कार्तिकेय और श्री गणेश जी को भगवान शिव और माता पार्वती ने पृथ्वी की परिक्रमा पहले परिक्रमा करने की शर्त सामने रखी  जिस पर भगवान गणेश इस परिक्रमा शर्त में विजयी हुए।
जब भगवान कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर लौटै तो उन्हें भगवान गणेश के विजयी होने की बात पता चली।

जिसके बाद वे अपने माता - पिता के पैर छूकर क्रोंच पर्वत की ओर चल दिए। हालांकि माता- पिता द्वारा मनाने और वहां पहुंचने पर भी कार्तिकेय नहीं माने तो भगवान शिव वहां ज्योर्तिलिंग स्वरूप में प्राण प्रतिष्ठित हो गए और तभी से इस ज्योर्तिलिंग को मल्लिकार्जुन नाम से जाना गया। श्रद्धालु यहां अपनी विभिन्न मांगों को  लेकर पूजन - अर्चन करते हैं और श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी होती है।

 

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