सिंहस्थ में शिप्रा स्नान से मिलता है बड़ा पुण्य,पाप होते है दूर जानिये कथा
सिंहस्थ में शिप्रा स्नान से मिलता है बड़ा पुण्य,पाप होते है दूर जानिये कथा
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मध्यप्रदेश की पावन नगरी उज्जैन में आगामी 22 अप्रैल से अमृत का मेला कहा जाने वाला सिंहस्थ प्रारंभ होने जा रहा है फिलहाल इसकी जोरो से तैयारियां चल रही है साथ ही इससे आकर्षित विदेशी मेहमान भी यहाँ आने लगे है कुछ ही दिनों में  उज्जैन में जन सैलाब उमड़ने वाला है इसका कारन है कुंभ में होने वाली भक्ति और शिप्रा के अमृत सामान जल से पवित्र स्नान जो की सभी पापो को दूर करने के लिए पूज्य माना जाता है 

जब शिप्रा के स्नान को इतना अधिक लाभदायक माना जा रहा है तो क्यों ना इसके इतिहास पर भी नजर डाली जाए वैसे तो शिप्रा का पौराणिक कथाओ में कई वर्णन मिलते है लेकिन सबसे ज्यादा मान्यता इसी कथा को प्राप्त है।

स्कंद पुराण में कहा गया है कि सारे भू-मंडल में शिप्रा के समान कोई दूसरी नदी नहीं है जिसके तट पर क्षणभर खड़े रहने मात्र से ही तत्काल मुक्ति मिल जाती है। शिप्रा की उत्पत्ति के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार- एक बार भगवान महाकालेश्वर भिक्षा हेतु बाहर निकले। कहीं भिक्षा न मिलने पर उन्होंने भगवान विष्णु से भिक्षा चाही, पर भगवान विष्णु ने उन्हें तर्जनी दिखा दी। भगवान महाकालेश्वर ने क्रोधित होकर त्रिशूल से उनकी अंगुली काट दी। उससे रक्तधारा प्रवाहित होने लगी। शिवजी ने अपना कपाल उसके नीचे कर दिया। कपाल भर जाने पर रक्तधारा नीचे बहने लगी, तभी से ये ‍'शिप्रा' कहलाई। इसी सन्दर्भ में कहा गया है की 'विष्णु देहात्समुत्पन्ने शिप्रे त्वं पापनाशिनी' मतलब भगवान विष्णु की देह से उत्पन्न शिप्रा नदी पापनाशनी है।

'शिप्रा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मुक्ति की प्राप्ति होती है। सिंहस्थ पर्व पर शिप्रा में स्नान करने का माहात्म्य तो और भी पुण्यदायक है। इस नदी में स्नान करने से धन-धान्य, पुत्र-पौत्र वृद्धि और मन की शांति मिलती है। इस नदी को अशुद्ध करने पर घोर पाप मिलने का भी शास्त्रों में वर्णन है।

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