जानिए शनि जयंती पर क्या है शुभ मुहूर्त, पूजन सामग्री, मंत्र और पूजा विधि?
जानिए शनि जयंती पर क्या है शुभ मुहूर्त, पूजन सामग्री, मंत्र और पूजा विधि?
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आज शनि देव का जन्मदिन है। जी हाँ, कर्मफलदाता शनि देव का जन्म ज्येष्ठ अमावस्या को हुआ था और इसी वजह से हर साल ज्येष्ठ अमावस्या को शनि जयंती (Shani Jayanti) मनाते हैं। आप सभी को बता दें कि इस दिन शनि देव ​की विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं। वहीँ शनि देव अपने भक्तों के दुखों और संकटों को दूर करते हैं, और उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। अब हम आपको बताते हैं शनि जयंती के मुहूर्त, मंत्र, पूजन सामग्री और पूजा विधि के बारे में।


शनि जयंती 2022 शुभ मुहूर्त-
ज्येष्ठ अमावस्या की शुरूआत: 29 मई को दोपहर 02 बजकर 54 मिनट से
ज्येष्ठ अमावस्या तिथि की समाप्ति: 30 मई को शाम 04 बजकर 59 मिनट पर
पूजा का शुभ समय: सर्वार्थ सिद्धि योग में सुबह 07 बजकर 12 मिनट से पूरे दिन

शनि देव का पूजन मंत्र-
ओम निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥

बीज मंत्र-
ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः

शनि गायत्री मंत्र-
ओम भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्

शनि जयंती की पूजन सामग्री-
शनि देव की मूर्ति या तस्वीर, नीले फूल, पुष्प माला, शमी का पत्ता, अक्षत्, धूप, दीप, गंध, गंगाजल, अगरबत्ती, बत्ती, काला या नीला वस्त्र, काला तिल, सरसों का तेल या तिल का तेल, हवन सामग्री, शनि चालीसा, शनि देव की आरती और शनि देव की जन्म कथा की पुस्तक।

शनि जयंती व्रत और पूजा विधि- सबसे पहले व्रत और पूजा का संकल्प करें। फिर शुभ मुहूर्त में शनि मंदिर जाकर शनि देव के दर्शन करें, लेकिन उनकी आंख में न देखें। अब शनि देव को नीले फूल, माला, अक्षत्, धूप, दीप, गंध, सरसों तेल, काला तिला, वस्त्र आदि समेत पूजन सामग्री अर्पित करें। इस दौरान शनि मंत्र का उच्चारण करते हैं। इसके बाद शनि चालीसा, शनि कवच, शनि स्तोत्र आदि का पाठ करें। इसी के साथ शनि मंत्र का जाप करें। पूजा का समापन शनि देव की आरती से करें। इसके बाद शनि देव से साढ़ेसाती, ढैय्या और शनि दोष से शांति की प्रार्थना करें। अब गरीबों को उड़द दाल, काला वस्त्र, लोहा, काला तिल, सरसों का तेल, जूता चप्पल, काला छाता, शनि चालीसा आदि का दान करें। उनको भोजन कराएं, असहायों की मदद करें। इसी के साथ दिनभर फलाहार आदि करें। शाम को शनि देव की संध्या आरती करें। रात्रि में जागरण करें और अगले दिन सूर्योदय के पश्चात पारण करके व्रत को पूरा करें।

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