निःस्वार्थ भाव से की गई सहायता ही सच्ची दोस्ती है
निःस्वार्थ भाव से की गई सहायता ही सच्ची दोस्ती है
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मानव के जीवन मे मित्रता का भाव होना अतिआवश्यक है। उसी के माध्यम से व्यक्ति के कार्य संपन्न होते है। और उसे जीवन मे आगे बढ़ने के लिये सहायता मिलती है। सच्ची दोस्ती तो वह होती है जो निःस्वार्थ भाव से किसी की सहायता व उसका साथ निभाय।

महाभारत का यह प्रसंग –

कौरवों की सेना के सेनापति कर्ण जो की पांडव थे। एक समय पांडवों की माता कुंती को ऋषि दुर्वासा ने एक मंत्र दिया और उनकी माता से कहा की इस मंत्र का जाप कर तुम जिस भी देव का स्मरण करोगी तो, ठीक देव की तरह तुम्हें पुत्र की प्राप्ती होगी।

बहुत ही उत्सुकता के साथ अपने वंश के लिये कुंती ने उस मंत्र का जाप कर सूर्यदेव का स्मरण किया। इसके कारण उनका गर्भ ठहर गया और कर्ण का जन्म हुआ। बिन विवाह के मां बनने के कारण कुंती को लोकलाज का डर सताया और कुंती ने कर्ण को एक संदूक में रखकर नदी में बहा दिया।

कर्ण जल मे बहते हुये तट के किनारे पहुच गया और वहाँ पहुंचे अधिरथ और उनकी पत्नी राधा को मिला तो वो उस बालक को देखते ही अत्यधिक प्रसन्न हो उठी। वो अधिरथ और उनकी पत्नी राधा प्रचलित मान्यताओं के अनुसार शूद्र थे। कर्ण को इसलिए सूत-पुत्र के नाम से भी जाना जता है।

महाभारत में उल्लेख मिलता है कि कर्ण की पत्नी का नाम पद्मावती था। वृषकेतु, वृषसेन उसके पुत्र थे। कर्ण बहुत दानवीर थे। जब इंद्र ने उनसे उनके कवच कुंडल जो उनके जन्म के साथ मिले थे। उन्हें दान देने को कहा तो कर्ण नें बिल्कुल भी संकोच नहीं किया और उसे दिये । ये कवच, सूर्य देव ने कर्ण को दिए थे। कहते हैं यह कवच जब तक कर्ण के पास थे तब तक उसे कोई युद्ध में हरा नहीं सकता था।

पर जब अपने अंतिम समय में पितामह भीष्म ने कर्ण को उनके जन्म का रहस्य बताते हुए महाभारत के युद्ध में पाण्डवों का साथ देने को कहा था। तो उसने मना कर दिया वे भले ही पांडवों के कुल का था पर उसने अपनी सच्ची दोस्ती व भाईचारा कौरवों के साथ निभाया जिसने उसका साथ दिया था। 

यहाँ वह अपने कुल खानदान को भूलबैठा और कर्ण ने इसका विरोध करके अपनी सत्यनिष्ठ दोस्ती का परिचय दिया। भीष्म के अनन्तर कर्ण कौरव सेना के सेनापति नियुक्त हुए थे। आखिर में अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया।

 

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