पुण्यतिथि : देश के लिए सरोजिनी नायडू ने दिया अपना जीवन
पुण्यतिथि : देश के लिए सरोजिनी नायडू ने दिया अपना जीवन
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भारत की स्वाधीनता को बल देने और इसके लिए अपना जीवन लगाने वालों में महिलाऐं भी पीछे नहीं थीं लेकिन भारत देश के स्वाधीन हो जाने के बाद उसे प्रबंधित करने और राजशाही से उसे लोकशाही में बदलना बहुत ही कठिन कार्य था। फिर इतने बड़े देश की व्यवस्थाओं को संभालना या फिर उन्हें एक ऐसा स्वरूप दिया जाना जिसमें भारत के हर वर्ग अच्छी तरह से रह सकें। इसके लिए कुछ लोगों ने प्रयास किए, इन लोगों में से एक थीं सरोजिनी नायडू।

जी हां, 13 फरवरी 1879 को उनका जन्म हैदराबाद में हुआ था। उनके पिता का नाम अघोरनाथ चट्टोपाध्याय था जो कि विद्वान थे। उनकी माता एक कवयित्री थीं। माता - पिता से मिले संस्कार उनमें कूट - कूटकर भरे हुए थे। उन्होंने कक्षा 12 वीं की परीक्षा अच्छे अंकों के साथ उत्तीर्ण की और 13 वर्ष की आयु में लेडी आॅफ द लेक नामक कविता की रचना की। गोल्डन थ्रैशोल्ड सरोजिनी नायडू का पहला कविता संग्रह था। मगर उनके बाद के दूसरे और तीसरे कविता संग्रह बर्ड आॅफ टाईम और ब्रोकन विंग ने ही उन्हें एक लोकप्रिय कवयित्री बना दिया। उन्होंने 1895 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु इंग्लैंड से अध्ययन किया।

1914 में इंग्लैंड में वे पहली बार गाँधीजी से मिलीं और उनके विचारों से प्रभावित होकर देश के लिए समर्पित हो गयीं। उन्होंने अनेक राष्ट्रीय आंदोलनों का नेतृत्व किया और जेल भी गयीं। संकटों से न घबराते हुए वे एक धीर वीरांगना की भाँति गाँव-गाँव घूमकर ये देश-प्रेम का अलख जगाती रहीं और देशवासियों को उनके कर्तव्य की याद दिलाती रहीं। वर्ष 1898 में सरोजिनी नायडू का विवाह हो गया।

वे डाॅ. गोविंदराजुलू नायडू की जीवन संगिनी बन गईं। कुछ नेताओं को सरकारी तंत्र और प्रशासन में नौकरी दे दी गई थी। उनमें सरोजिनी नायडू भी एक थीं। उन्हें उत्तर प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया और बाद में वे लखनऊ में बस गईं। 2 मार्च 1949 में लखनऊ में ही उनका निधन हुआ।

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