श्राद्ध पक्ष के सौहल दिनों में श्राद्ध कर्म करने के लिए अलग अलग नियम तय हैं। यही नहीं अलग - अलग दिन श्राद्ध करने के अलग - अलग वार तय किए गए हैं। इस दौरान वार के अनुसार भी श्राद्ध तय किए जाते हैं तो दूसरी ओर पंचमी और षष्ठी तिथि के भी श्राद्ध किए जाते हैं। इस दौरान श्राद्ध करने वाले जजमान को अलग अलग पुण्य फल की प्राप्ति होती है। यदि श्राद्ध पंचमी तिथि को किया जाता है तो इसे अनेक संतानों की प्राप्ति होती है।
षष्ठी में श्राद्ध तेजस्वी बनाता है। सप्तमी तिथि को किया गया श्राद्ध खेत और भूमि की प्राप्ति करवाता है। दूसरी ओर शुक्रवार तिथि का श्राद्ध धनप्राप्ति और शनिवार का श्राद्ध आयुष्यवृद्धि करवाता है। यही नहीं श्राद्ध करने से पुयरव, आर्द्रव और धूरिलोचन देवता तृप्त होते हैं।
यही नहीं वसु, रूद्र और आदित्य भी श्राद्धकर्म से संतुष्ट होते हैं। कहा गया है कि श्राद्ध करने से माता पिता को रूद्रगण में और दादा - दादी की आदित्य गण में स्थान मिलता है। यदि श्राद्ध विधि स्वयं ही की जाती है तो उनका बहुत ही महत्व होता है। श्राद्ध करने वाले ब्राह्मणों का मिलना बहुत ही मुश्किल हो गया है लेकिन यदि श्राद्ध स्वयं न कर पाऐं तो ब्राह्मण से श्राद्ध करवाया जा सकता है। अपने संबंधियों का भी श्राद्ध किया जा सकता है।